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________________ ३१६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ दे देने मात्र से शान्तल देवी जैन से वैष्णव नहीं बन गई। वह जीवनभर जैन रही एवं प्रायु के अवसान काल में उसने सच्ची जैन साधिका की भांति समाधिपूर्वक देह त्याग किया। जिन शासन के उत्कर्ष के लिये शान्तल देवी द्वारा किये गये कार्यों के परिणामस्वरूप ही शक सं. १०५० (ई० सन् ११२८) के एक शिलालेख में उसके लिये-"मुनिजन चिनेयजन विनीते यु", "चतुस्स मय समुद्धरणेयु", "व्रत गुणशील चारित्रान्तः करणे यु", "सम्यक्त्व चूडामणि यु", "उद्धृत सवतिगन्ध वारणे यु", "पुण्योपार्जन करण कारणेयुं", "जिन समय समुदित प्राकारेयुं", "जिन धर्म कथाकथन प्रमोदेयु", "आहाराभय भैषज्य शास्त्र दान विनोदेयु", "जिन धर्म निमलेयु", "भव्य जन वत्सलेयु" एवं "जिन गन्धोदक पवित्री कृतोत्त भांगेयु"-इन उत्कृष्ट विशेषणों का प्रयोग कर उसकी श्लाघा की गई है। लेख संख्या ५३ और ५६ के अनुसार शान्तल देवी ने शक सं. १०४० (ई० सन् १११८) में, श्रवण बेलगोल में सवति गन्ध वारण वसदि नामक ६६ फूट लम्बा और ३५ फुट चौड़ा अति भव्य एवं विशाल मन्दिर बनवाया। शान्तल देवी ने प्रभु के अभिषेक के लिये एक तालाब का निर्माण करवाया और इस मन्दिर की सभी प्रकार की व्यवस्था के लिये अपने गुरु प्रभाचन्द्र को एक ग्राम का दान किया। शान्तल देवी ने इस मन्दिर में भगवान् शान्तिनाथ की पाँच फुट ऊँची एक आकर्षक मूर्ति की प्रतिष्ठा की। इस मूर्ति के पाद-पीठ पर इसका निर्माण कराने वाली शान्तल देवी की प्रशंसा में उट्टङ्कित श्लोक इस प्रकार है : प्रभाचन्द्र मुनीन्द्रस्य, पद पंकज षट् पदा। शान्तला शान्ति-जैनेन्द्र-प्रतिबिम्बमकारयत् ।।१।। सिंह पीठ पर उत्तौ वक्त्र गुणं दृशोस्तरलतां सद् विभ्रमं भ्रूयुगे। दोषानेव गुणी करोषि सुभगे सौभाग्य भाग्यं तव, वक्तं शांतल देवि वक्तुमवनी शक्नोति को वा कविः ॥२॥ She also gave a village to the Brahmans and she was associated with the Keshava Teraple at 'Bailur and Hasan that her husband Bittideva Vishnuvardhana, built. Although the royal couple were Jains by persuation, they supported Vaishnavism and Shaivism also. They had as their teacher Prabhachandra Siddhant Deva............. (जैनिज्म इन साउथ इण्डिया-एस०के० रामचन्द्र राव द्वारा लिखित) २ जैन शिलालेख संग्रह , भाग १, लेख सं. ५३ (१४३) पृष्ठ ६२ , जैन शिलालेख संग्रह, भाग १, पृष्ठ ८८-१०० और १२३-१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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