SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रव्य परम्परात्रों के सहयोगी राजवंश ] [ ३१५ उल्लेख भी किया गया है कि महाराज विष्णुवर्द्धन ने उसका पुत्रवत् लालनपालन किया, उसे सभी विद्याओं एवं कलाओं का प्रशिक्षण दिलवा कर उसका अपने प्रधानमन्त्री की पुत्री के साथ बड़े ही हर्षोल्लास से विवाह किया।' इस शिलालेख में उल्लिखित तथ्यों पर विचार करने से यही निष्कर्ष निकलता है कि ई० सन् ११३७ तक अर्थात् रामानुजाचार्य के मैसूर राज्य से चले जाने के १२ वर्ष पश्चात् तक होयसल नरेश विष्णूवर्द्धन जैन धर्मानुयायी था। अगर उसने वैष्णव धर्म स्वीकार कर लिया होता तो राजा को अपने पिता से भी अधिक पूज्य मानने वाले इम्मडि दण्डनायक बिट्टियण पर इसका प्रभाव पड़ता। यदि किसी तरह मान भी लिया जाय कि इम्माड़े दण्डनायक पर प्रभाव न भी पड़ा तो वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी बन जाने की स्थिति में विष्णुवर्द्धन उसे न तो अपने नाम पर जिनालय बनाने की अनुमति देता और न उसे ग्रामदान ही करता। इन सब के अतिरिक्त एक और प्रमाण है विष्णुवर्द्धन होयसल नरेश के पुत्र युवराज नरसिंह देव द्वारा ई० सन् १९४७ में एल्कोटि जिनालय की मुगुलर वसदि के लिये दिये गये भूमिदान का शिलालेख, इस शिलालेख में होयसल नरेश विष्णुवर्द्धन के लिये “सम्यक्त्व चूडामरिण" विशेषण का प्रयोग किया गया है। __अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक प्रगाढ़ निष्ठा सम्पन्न जैन धर्मानुयायी बने रहने के उपरान्त भी श्री राइस जैसे विद्वान् ने उसके सम्बन्ध में जो यह आशंकापूर्ण अभिमत व्यक्त किया है कि रामानुजाचार्य के उपदेशों से विष्णुवर्द्धन ने जैन धर्म का परित्याग कर वैष्णव धर्म अंगीकार कर लिया था उसके पीछे अनेक कारणों में से एक कारण यह भी हो सकता है कि एक शिलालेख में उसके लिये प्रयुक्त किये गये विशेषणों में एक विशेषण "श्रीमत् केशवदेव पादाराधक' का भी प्रयोग किया गया है। किन्तु केवल एक इस विशेषण के आधार पर उसे केशव के चरणारविन्द का प्राराधक मान लेने से पहले इसको भी भुलाना नहीं होगा कि इस विशेषण से पहले विष्णुवर्धन के लिये इसी शिलालेख में “सम्यक्त्व चूडामणि' विशेषरण का भी प्रयोग किया गया है, जो कि केवल कट्टर जैन के लिये ही प्रयुक्त किया जाता है। वास्तविकता यह है कि विष्णूवर्द्धन सच्चा जैन होने के साथ-साथ दूसरे धर्मों के प्रति भी बड़ा उदार था। अपनी इसी उदारता एवं धर्म सहिष्णुता की वृत्ति के परिणामस्वरूप उसने हसन जिले के बेलर नगर में केशव का मन्दिर बनवाया। उस मन्दिर के लिये विष्णुवर्द्धन की पटरानी शान्तल देवी ने भी एक ग्राम ब्राह्मणों को दान में दिया । केशव के मन्दिर के लिये दान - - - - - १ जैन शिलालेख संग्रह, भाग ३, पृष्ठ १-१२ ३ जैन शिलालेख संग्रह, भाग ३, पृष्ठ ७४-७८ 3 जैन शिलालेख संग्रह, भाग ३, लेख संख्या ५३ (१४३), शक सं. १०५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy