________________
द्रव्य परम्परामों के सहयोगी राजवंश ]
[ ३०६
में इस तीर्थ का पूजा-अर्चा आदि सभी भांति का प्रबन्ध सम्यक रीत्या सम्पन्न करवाया।
उदयादित्य वल्लाल, वीर वल्लाल और गंगराय वल्लाल-इन तीन राजाओं में से प्रत्येक ने गोम्मटेश तीर्थ की अपने शासनारूढ़ होने से पूर्व की प्राय व्यवस्था को यथावत् अक्षुण्ण रखते हुए अपनी ओर से पांच-पांच हजार पैगोडा की प्राय वाले गांव गोम्मटेश को दान स्वरूप अभिनव रूपेण अर्पित किये।
तदनन्तर होय्सल नृप बेट्ट वर्द्धन वल्लाल देव ने गोम्मटेश तीर्थ की व्यवस्था के लिये ५०००० (पचास हजार) पैगोडा प्रतिवर्ष की आय के गांवों का दान किया और शुभचन्द्राचार्य को इस तीर्थ की व्यवस्था की देख-रेख हेतु भट्टारक पद पर मठाधीश नियुक्त किया । यह व्यवस्था ३१ बर्षों तक सुचारू रूप से चलती रही ।
आगे चलकर शक सं. १०३६ (तदनुसार ई. सन् १११७) में इस होय्सल नरेश वेट्ट वर्द्धन ने अपने विश्वासपात्र परामर्श दाताओं (मन्त्रियों) के परामर्श और रामानुजाचार्य की अकाट्य युक्तियों से 'तप्त मुद्रा' (वैष्णव सम्प्रदाय का चिह्न) धारण कर लिया और इस प्रकार अपने वंश परम्परागत धर्म जैन धर्म का परित्याग कर वैष्णव धर्मावलम्बी बन गया। बेट वर्द्धन ने न केवल धर्म-परिवर्तन ही किया अपितु धर्म परिवर्तन के साथ-साथ उसने अपना नाम भी बदल कर बेट्ट वर्द्धन से विष्णूवर्द्धन रख लिया। वैष्णव धर्म अंगीकार करते ही उसके अन्तर्मन में जैन धर्म के प्रति तीव्र घृणा उत्पन्न हो गई और इसके फलस्वरूप उसने शक ७६० पूर्व में बने जैन मन्दिरों, जैन वसदियों और जैन धर्मस्थानों को घूलिसात् करवा दिया और दिये गये सभी प्रकार के दान रद्द कर दान से दिये गये ग्राम भूमि आदि अग्रहारों को छीन लिया। वैष्णव धर्मावलम्बी बनने के पश्चात् विष्णूवर्द्धन ने बेलर में चेनिग नारायण, तलकाड में कीर्तिनारायण, विजयपुर में विजयनारायण, गदग में वीरनारायण और हरदन हल्ली में लक्ष्मी नारायण का मन्दिर-इसप्रकार पंचनारायणों के मन्दिरों का निर्माण करवाकर पूर्व में जैन वसति एवं मन्दिरों को जितने भी दान दिये गये थे वे सब छीन कर इन पंच नारायणों के मन्दिरों को समर्पित कर दिये।
इस प्रकार ध्वस्त करवाये गये जैन मन्दिरों के पत्थरों से विष्णुवर्धन ने टोन्डा मिरु में तिरुमल सागर नामक एक विशाल सरोवर का और उसके नीचेतिरुमल सागर सत्त्रागार का निर्माण करवा कर उस सत्त्रागार में वैष्णव सम्प्रदाय के साधुनों को प्रतिदिन भोजन-दान की व्यवस्था की।
___इस प्रकार विष्णुवर्द्धन द्वारा जैन वसतियों और मन्दिरों को ध्वस्त किये जाने का अनवरत कार्यक्रम उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया तो धरती इस देव द्रोह के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org