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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
चालुक्य राज से सम्बन्ध विच्छेद कर अपने आपको स्वतन्त्र घोषित किया और नोलम्बवाडी, वनवासी एवं हंगल क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया । राज्य विस्तार के लिये विष्णुवर्द्धन का कल्याणी के चालुक्यों के साथ यह संघर्ष सोमेश्वर के दोनों पुत्रों - पेरमा जगदेक मल्ल ( ई. सन् १९३८- ५० ) एवं तेल तृतीय ( ई. सन् १९५०६३) के साथ में चलता रहा । उसने ई. सन् १९४६ में होय्सल राज्य की राजधानी द्वार समुद्र में अपने जयसिंह नामक एक पुत्र को रखा और स्वयं बंकापुर ( धार - वाड) में रहने लगा । ई. सन् १९४७ के लेख सं. ३२७ में विष्णुवर्धन के लिये "महा मण्डलेश्वर" के साथ-साथ "मलय चक्रवर्ती" का विशेषरण प्रयुक्त करते हुए उसका राज्य सेतु (सेतुबन्ध रामेश्वर ) से विन्ध्याचल तक बताया गया है । इससे स्पष्ट है कि वह विशाल राज्य का स्वामी और शक्तिशाली स्वतन्त्र राजा था । '
श्री बी. एल. राइस के अभिमतानुसार विष्णुवर्द्धन ने वैष्णव धर्म स्वीकार कर लिया था | 3
इण्डियन एन्टिक्वेरी वोल्यूम २ (सन् १८७३) के पृष्ठ सं. १२६ से १३३ पर प्रकाशित केप्टिन मेकेन्जी के श्रवरण बेल्गोल सम्बन्धी लेख में होय्सल राजा विष्णुवर्द्धन के धर्म परिवर्तन के सम्बन्ध में जो विवरण दिया गया है, वह इस प्रकार है :
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“शक सं. ७७७ (ई. सन् ८५५) में यह ( श्रवरण बेलगोल के चारों ओर का ) प्रदेश होयसल वंशी क्षत्रिय राजाओं के अधिकार में आ गया । श्रादित्य नामक होय्सल राजा ने गोम्मटेश के दर्शन कर इस तीर्थ के प्रबन्ध के लिये चामुण्डराय द्वारा प्रदत्त गावों के अतिरिक्त ६६,००० पैगोडा की वार्षिक आय वाले गाँव दान में दिये और सोमगन्धाचार्य को गोमटेश की पूजा और वहां के सब प्रकार के प्रबन्ध के लिये भट्टारक पद पर आसीन किया । होय्सल नरेश आदित्य के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी श्रमर कीर्ति बल्लाल ने ५००० पैगोडा प्रतिवर्ष की आय के ग्राम गोम्मटेश की अर्चा-पूजा एवं प्रावश्यक प्रबन्ध के लिए दान में दिये और त्रिदाम विबुधानन्दाचार्य को इसके प्रबन्ध के लिये मठ का मठाधीश भट्टारक नियुक्त किया । होय्सल नरेश अमर कीर्ति बल्लाल देव द्वारा की गई यह व्यवस्था ४६ वर्ष तक सुचारू रूप से चलती रही । तत्पश्चात् होय्सल महाराजा अंगराज ने प्रभाचन्द्र सिद्धांताचार्य को मठाधीश भट्टारक नियुक्त कर ५६ वर्षों तक उनके द्वारा तीर्थ का समुचित प्रबन्ध और देव पूजा आदि व्यवस्था को सुचारू रूपेण चलवाया । तदनन्तर होय्सल नरेश प्रताप बल्लाल ने गुरणचन्द्राचार्य को मठाधीश बना ६४ वर्षों तक उनके तत्वावधान
१. जैन शिलालेख संग्रह भाग ३, लेख संख्या ३२७, पृ. ७४-७८
२. राइस मैसूर एण्ड कुर्ग, पृष्ठ ६६
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