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[जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
से भरी गाड़ियां निकलीं वे सब मार्ग भाराकान्त माड़ियों के निरन्तर आवागमन के परिणामस्वरूप गहन घाटियों के रूप में परिणत हो गये ।'
पिनयादित्य ने मन्तावर में एक नहर पहुंचाई और दूसरी बार जब वह मन्तावर के पार्श्वस्थ पर्वत पर स्थित वसदि में गया तो वहां के निवासियों की प्रार्थना पर पास के ग्राम में भी वसदि का और वसदि के आस-पास भवनों का निर्माण करवा कर ग्राम के करों का वसदि के लिये दान किया एवं उस वसदि का नाम ऋषि हल्लि रखा।
- विनयादित्य ने अपने १६ वर्ष के शासन काल में जैन संघ की श्रीवृद्धि के साथ-साथ होयसल राज्य की सीमाओं का भी दूर-दूर तक विस्तार किया। इसकी महारानी-केलेयव्वरसी भी परम जिन भक्त और बड़ी ही श्रद्धानिष्ठ एवं दानी महिला थी। केलेयव्वरसी ने समय पर एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम एरेयंग रखा गया। विनयादित्य के शासन काल में जैन धर्म खूब फला-फूला।
अंगडि से प्राप्त लेख सं० २०० के उल्लेखानुसार (जैन शिला लेख भाग २ पृष्ठ २४५-४६) राजा विनयादित्य के गुरु शान्ति देव ने अंगडि में शक सं. १८४ (ई. सन् १०६२) की प्राषाढी पूर्णिमा के दिन सन्यस्त-संस्तारक (मन शन) अंगीकार कर श्रावण......... के दिन स्वर्गारोहण किया। राजा और नगर के व्यापारियों ने राष्ट्रसन्त अपने गुरु शान्ति देव का स्मारक बनवाया।
होयसल राजवंश के तीसरे राजा इस विनयादित्य का राज्य ई. सन् १०४७ से १०६३ तक रहा। इसके शासन काल के अनेक शिला लेख उपलब्ध हुए हैं।
५-एरेयंग-यह होयसल राजवंश का चौथा राजा हुआ । विनयादित्य के पश्चात् ई. सन् १०६३ में यह शशकपुर के राज सिंहासन पर बैठा। एरेयंग की पटरानी का नाम एचल देवी था। ये दोनों राज दम्पति परम जिन भक्त थे। इन दोनों ने जैन संघ की श्रीवृद्धि एवं अभिवृद्धि के लिये अनेक कार्य किये ।
श्रवण बेलगोल-अक्बना वसदि के एक शिलालेख (सं. ४४४ [३२७]). एरेयंग को अप्रतिम योद्धा और चालुक्य राज का दक्षिण भुजदण्ड बताया गया है। भण्डार वसदि (श्रवण बेलगोल) के शिलालेख संख्या ४८१ (३४६) के उल्लेखानुसार राजा एरेयंग स्वयं बड़ा विद्वान् होने के साथ-साथ विद्वानों की विद्वत्ता ' जन शिलालेख संग्रह भाग १, लेख सं. ५३ (१४३) पृ. ५८ २ एम. ए. भार (मसोर प्रार्कोलोजिकल रिपोर्ट For १९३२P/--१७२-१७४
३ दक्षिण भारत का इतिहास, नील कण्ठ शास्त्री, पृष्ठ १९६ .. ४ एपि ग्राफिका कर्णाटिका, भाग २, पृष्ठ २६८-२७३ मोर पृष्ठ ५०१
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