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________________ ३०२ ]. [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ जाता है कि पोयसल राजवंश का संस्थापक यादव वंशी सल मैसूर के शिकारपुर जिले के अन्तर्गत अंगडि (शशकपुर) क्षेत्र का संभवतः चालुक्यों का अधीनस्थ सामन्त था । होम्सल राज्य का संस्थापक और इस राजवंश का प्रथम राजा वही यादव रांज सल माना गया है। होयसल राजा सल और उसके वंश के राजाओं का क्रमिक विवरण प्राचीन शिलालेखों से निम्नलिखित रूप में मिलता है : १. सल (पोयसल)-ऊपर उद्ध त किये गये शिलालेखों में पोयसल अथवा होयसल राज्य का संस्थापक और होयसल राजवंश का प्रथम राजा इस सल को माना गया है । सल यादव वंशी क्षत्रिय कुमार था और सम्भवतः अपनी किशोरावस्था तक चालुक्यों का अधीनस्थ सामन्त था। सल शशकपुर मैसूर के अन्तर्गत जिला कादुर के मुदगेरे (शिकारपुर) ताल्लुक में अवस्थित वर्तमान अंगडि का शासक था। यह स्थान कर्णाटक प्रान्त के पश्चिमी घाट की पहाड़ियों के प्रदेश में प्रवस्थित है। पोयसल नरेशों ने अपने प्रापको 'मल परोलगण्ड' अर्थात् -पहाड़ी सामन्तों में मुख्य कहा है। इससे भी यह सिद्ध होता है कि होयसल वंशी ये शासक दक्षिण में मूलतः इसी पहाड़ी प्रदेश के निवासी थे। प्राचार्य सुदत्त और संघ की सहायता से सल ने शशकपुर में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। जैनाचार्य सुदत्त किस संघ के प्राचार्य थे, इस सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक उल्लेख अद्यावधि उपलब्ध न होने के कारण निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता, तथापि मैसूर, धारवाड़, सोरब, कुप्पुतुर, हलसी, मादि क्षेत्रों में ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दी से ही यापनीय संघ का उल्लेखनीय वर्चस्व रहा, इससे यह अनुमान किया जाता है कि सम्भवतः प्राचार्य सुदत्त यापनीय संघ के प्राचार्य हों। ऐसा प्रतीत होता है कि शशकपुर प्रदेश में अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने के उपरान्त भी होयसल राज के संस्थापक राजा सल ने चालूक्यों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाये रक्खे और अपने आपको चालुक्य राज का आज्ञानुवर्ती महामण्डलेश्वर प्रथवा मण्डलेश्वर सामन्त ही मानते रहे । सल को राजधानी शशकपुर (वर्तमान अंगडि) में ही रही। पोयसल राज्य के संस्थापक राजा सल के सम्बन्ध में इससे विशेष विवरण अद्यावधि उपलब्ध नहीं हुआ है। पोयसल राज्य के संस्थापक अथवा प्रथम राजा सल का राज्यकाल ई. सन् १००४ से १०२२ तक रहा । २. विनयादित्य प्रथम । इसके सम्बन्ध में कोई महत्वपूर्ण विवरण उपलब्ध नहीं होता। ३. नृप काम होयसल राजवंश का राजा हुमा । नृप काम का दूसरा नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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