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द्रव्य परम्परात्रों के सहयोगी राजवंश ]
कि अंगडि ग्राम वस्तुतः पश्चिमी घाट की पहाड़ियों के ढलान वाले प्रदेश में अवस्थित है।
पश्चिमी चालुक्य वंश के राजा तेल द्वारा जैन धर्म के प्रबल संरक्षक राष्ट्रकूट वंश के मलखेड राज्य का अन्त कर दिये जाने के पश्चात् दक्षिण में जैन संघ के राज्याश्रय विहीन हो जाने के परिणामस्वरूप अनेक प्रकार की कठिनाइयों का साक्षात्कार करने के साथ-साथ अन्य धर्मावलम्बी राजाओं एवं अजैन प्रजा में उग्ररूप से बढ़ती हुई धार्मिक असहिष्णुता के फल स्वरूप जैन संघ का न केवल विकास ही अवरुद्ध हुआ अपितु उसका शन-शन ह्रास भी होने लगा था। उस सब से होयसल राजवंश जैसे जैन धर्म के प्रबल समर्थक एवं संरक्षक शक्तिशाली राज्य के अभ्युदय से जैन संघ को बड़ी भारी शान्ति मिली। होयसल राज्य का बल पाकर जैन संघ का मनोबल बढ़ा और वह पुनः द्विगुरिणत उत्साह एवं गति से अभिवृद्ध होने लगा। होयसल राजवंश और जैनसंघ-दोनों ही एक दूसरे की अभिवृद्धि को अपनी अभिवृद्धि समझकर परस्पर एक दूसरे की उन्नति-अभिवृद्धि के लिये होयसल राज्य के प्रारम्भ से लेकर अन्त तक पूर्णतः प्रयत्नशील रहे। होयसल राजवंश के राजाओं ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार एवं उसके वर्चस्व की अभिवृद्धि तथा जैन संघ पर किसी प्रकार के संकट के उपस्थित होने पर उस संकट से जैन धर्म की रक्षा के लिये अनेक उल्लेखनीय कार्य किये-इस बात की मूक साक्षी दक्षिणापथ के विभिन्न क्षेत्रों से बहुत बड़ी संख्या में उपलब्ध प्राचीन शिलालेख, ताम्र पत्र, वसदियां, मन्दिर और भव्य जिन भवनों के ध्वंसावशेष वर्तमान युग में भी देते हैं।
जैन धर्म के प्रति प्रगाढ निष्ठावान जैन धर्म के प्रबल समर्थक एवं शक्तिशाली संरक्षक तथा परम जिन भक्त होयसल राजवंश के राजाओं का प्रथ से इति तक का संक्षिप्त परिचय यहां इस अभिप्राय से दिया जा रहा है कि आज के युग का प्रत्येक जैन धर्मावलम्बी तीर्थकर कालीन राजानों का स्मरण दिलाने वाले इन होयलस राजामों के धर्म प्रेम से प्रेरणा लेकर दृढ़ संकल्प के साथ जिन शासन की सेवा का व्रत ले सके।
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, इस राजवंश का होयसल नाम वस्तुतः सुदत्त नामक एक जैनाचार्य का दिया हुप्रा है। मूलतः इस राजवंश के राजागरण यादव वंशी थे। यहापि कोई पूर्णतः स्पष्ट उल्लेख तो नहीं मिलता किन्तु सोरव में दण्डवती नदी के पूर्वीय तट पर अवस्थित अवभृत मण्डप के स्तम्भ पर के शक सं० ११३० के लेख सं० ४५७ (जैन शिलालेख संग्रह, भाग ३) की प्रारम्भिक तीसरी पंक्ति से दसवीं पंक्ति में जो इस प्रकार का उल्लेख है कि कुन्तल देश के वनवासे प्रदेश मौर जलधि परिवेष्टित अन्यान्य प्रदेशों का स्वामी यदुकुल के सल को कुन्तल देश का वनवास प्रदेश देना चाहता था--उसे देखते हुए अनुमान किया
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