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________________ द्रव्य परम्परामों के सहयोगी राजवश | [ २६७ राज रट्ट कन्दर्प, राज मार्तण्ड आदि अनेक उपाधियों से विभूषित था । वह घोड़े पर बैठकर दण्ड से गेंद का खेल खेलने वालों में परम निष्णात और अद्वितीय था। इन्द्रराज ने शक सं० ६०४ (ई० सन् १८२) की चैत्र शुक्ला ८ को भोमवार के दिन समाधि मरण का वरण किया। गन्धवारणवस्ति के इस स्तम्भ लेख से दो महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य प्रकाश में आते हैं। पहला तो यह कि आज से १००० वर्ष पहले आजकल के पोलो जैसा कोई खेल खेला जाता था। उस खेल में अनेक अश्वारोही दण्ड से गेंद खेलते थे। दूसरा महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य यह प्रकाश में आता है कि ई. स. ९७२ में राष्ट्रकूट वंश के राजाओं की राजधानी मलखेड़ के पतन के पश्चात् भी राष्ट्रकट वंश का दक्षिण में कर्णाटक के किसी भू-भाग पर ई. सन् १८२ तक शासन रहा। २१-इन्द्र-रट्ट कन्दर्प देव-राज मार्तण्ड-कालिक कोल्मण्ड आदि-आदि अनेक विरुदों का धारक इन्द्र नामक राजा हुआ । इन्द्र ने श्रवण बेलगुल में ई. सन् ९८२ में संल्लेखना-समाधि पूर्वक प्राणों का परित्याग किया। इन्द्र के पश्चात् कर्णाटक में इस राजवंश के अन्य राजा का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता। राष्ट्रकूट वंशी राजाओं के शासन काल में जैन धर्म एवं जैन संघ के साथसाथ जैन साहित्य की भी प्रभूतपूर्व उन्नति हुई । अकलंक की 'अष्टशती', विद्यानन्दि की 'प्रष्टसहस्री', माणिक्य नन्दि का परीक्षामुख सूत्र', इस पर प्रभाचन्द्र का विशद टीका ग्रन्थ 'प्रमेय कमल मार्तण्ड', मल्लवादी का नय चक्र, वीरसेन का षट्खण्डागम पर ७२ हजार श्लोक प्रमाण धवला नामक महान ग्रन्थ, वीर सेन और जय सेन का कषाय पाहुड़ पर 'जय धवला' नामक महान टीका ग्रन्थ, जिन सेन और गुण भद्र का आदि पुराण, जिन सेन का 'पार्वाभ्युदय' नामक काव्य, गुण भद्र का 'उत्तर पुराण' और आत्मानुशासन, राष्ट्रकूट वंशी महाराजा अमोघवर्ष का 'कविराजमार्ग' और 'प्रश्नोत्तर मालिका', अपभ्रंश के महाकवि पुष्पदन्त का 'महापुराण' और 'यशोधर काव्य', सोमदेव का 'यशस्तिलक चम्प', वादीभ सिंह उदय देव का क्षेत्र चूड़ामणि' एवं 'गद्य चिन्तामणि', इन्द्रनन्दि का लोक प्रिय 'ज्वाला मालिनी स्तोत्र' आदि जैन साहित्य महोदधि के ग्रन्थ रत्न इसी राष्ट्रकूट वंश के राज्य काल की दिव्य देन हैं। राष्ट्र कूट वंश के राजामों के शासन काल में पम्प, रत्न, आसग, चामुण्ड राय आदि कन्नड़ भाषा के जैन कवियों ने कन्नड़ भाषा में अभिनव उच्च कोटि के साहित्य का निर्माण कर कन्नड़ को समृद्ध भाषा बना संसार की प्रतिष्ठित भाषाओं में उसे स्थान दिलाया। जैन साहित्य के निर्माण की दृष्टि से राष्ट्रकूट वंशी राजाओं के शासन काल को साहित्य सजन का स्वर्णयुग कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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