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________________ २६६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ ___ जो मान्य खेटनगर दीन दुखियों एवं अनाथों का प्राशा केन्द्र कल्पतरु और बहुजन संकुल था, जिसकी पुष्पवाटिकाएं सदा पुष्पों से सुरभित एवं हरी भरी रहती थी, जो अपनी अनुपम शोभा से सौन्दर्य में अलकापूरी को भी तिरस्कृत करता था, वह विद्ववन्द का प्राणों से प्रिय पूर आज धाराधिपति के कोपानल से जल गया है । हा ! अब पुष्पदंत कवि कहां निवास करेगा? हर्ष सियाक के लौट जाने पर गंगराज मारसिंह द्वितीय ने खोटिंग को ई. सन् ९७३ में पुनः मान्यखेट के सिंहासन पर बैठाया। किन्तु कुछ ही दिनों तक राज्य करने के पश्चात खोटिंग की मृत्यु हो गई और खोटिंग का भतीजा (कष्ण का पुत्र) कर्क द्वितीय ईस्वी सन् ६७३ में राज्य सिंहासन पर बैठा । कुछ ही महीने पश्चात् चालुक्यराज तैल द्वितीय ने कर्क द्वितीय को पराजित कर मान्यखेटपुर पर अधिकार कर लिया ।कृष्ण तृतीय ने कर्क को तरदावादि की जागीर प्रदान की और वह वहीं रहने लगा। . इस प्रकार जैन धर्म के प्रबल पोषक, दीन दुखियों और अनाथों के आशा केन्द्र महाकवियों एवं विद्वानों के प्राश्रयदाता राष्ट्रकूट वंश के राजामों के अन्त एवं मान्यखेट के पतन के साथ ही दक्षिण में जैन संघ का एक बहुत बड़ा सबल सम्बल समाप्त हो गया। राष्ट्रकूट वंश के सुदीर्घ शासनकाल में दक्षिणापथ में जैन धर्म उल्लेखनीय रूपेण पुष्पित-पल्लवित और उत्तरोत्तर अभ्युत्थान के पथ पर अग्रसर हो रहा था । राष्ट्रकूट राजवंश के राज्य के समाप्त होते ही न केवल उसकी प्रगति में प्रवरोध माया अपितु उत्तरोत्तर उसका ह्रास होना प्रारम्भ हो गया। ___ यद्यपि ई० सन् १७२ (वि० सं० १०२६) में मान्य खेट के पतन के साथ ही राष्ट्रकूट वंश का राज्य समाप्त हो गया तथापि इस वंश के २० वें राजा कर्कराज के पुत्र २१ वें राष्ट्रकूट वंशीय राजा इन्द्र का नाम ई० सन् १८२ तक उपलब्ध होता है। __ लेख सं० ३८ में उल्लेख है कि गंगवंश के २४ वें राजा मारसिंह द्वितीय ने राष्ट्रकट वंश के २० वें राजा कर्क के पुत्र इन्द्र का राज्याभिषेक किया, जो मारसिंह द्वितीय का भानजा था । लेख सं० ५७ में उल्लेख है कि इन्द्रराज गंगगाङ्गय (सत्य वाक्य राचमल्ल की उपाधि) का दौहित्र और राजा राज चूडामणि का दामाद था । राजा इन्द्र १. जैन शिलालेख संग्रह भाग २, लेख संख्या ३८ व ५७ जैन शिलालेख संग्रह, भाग १, के शक सं० ६०४ (ई० सन् ६८२) के लेख संख्या ५८ में उल्लेख है कि राजा राज चूडामणि मार्ग मल्ल ने अपने एक भावन गन्ध हस्ति नामक वीर योद्धा को उसके अनुपम शौर्य के उपलक्ष में अपनी सेना का नायक बनाया था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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