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द्रव्य परम्पराओं के सहयोगी राजवंश ]
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किन्तु ई. सन् ६७२ में धारा के परमार राजा हर्ष सियाल क द्वारा परास्त हो गया।' इसकी पुत्री जकब्बे अपर नाम जाकलदेवी इसी चालुक्यराज तैल को व्याही गई थी।
राष्ट्रकूट वंश के २०वें राजा कर्क-अमोघवर्ष की पराजय एवं राष्ट्रकूट राज्य की राजधानी मान्यखेट के पतन के साथ ही जैन धर्म के प्रबल पोषक राष्ट्रकूट वंश के शक्तिशाली साम्राज्य का सूर्य अस्त प्रायः हो गया।
___ कवि धनपाल ने अपनी महत्वपूर्ण कृति “पाइय लच्छी नाम माला" नामक ग्रंथ को प्रशस्ति में राष्ट्रकूट राज्य के अंत एवं मान्य खेट के पतन की इस ऐतिहासिक घटना का काल निर्देश के साथ निम्नलिखित रूप में उल्लेख किया है :
विक्कम कालस्स गए, अउणत्तीसुत्तरे सहस्मंमि । मालवरिद धाडीए लूडिए मन्नखेडंमि ।। धारा नयरीए परिठिए ण, मग्गे ठियाए अरणवज्जे । कज्जे करिण बहिणीए, सूदरी नाम धिज्जाए। कइणो अंधजण किंवा कुसलत्ति पयारणमंतिया वण्णा।
नामंमि जस्स कमसो,तेणेसा विरइया देसी ।।
राष्ट्रकट वंश के राजाओं की राजधानी मान्यम्वेटपूर के पतन के समर के इस प्राचीन उल्लेख मे भी इस ऐतिहासिक तथ्य की पुष्टि होती है कि राष्ट्रकूट वंश का दक्षिण में जो जैन धर्म पोषक एवं शक्तिशाली राज्य था वह विक्रम मं० १०२६ ई० सन् १७२ में समाप्त हो गया ।
मान्यखेटपुर के पतन पर अपभ्रण, संस्कृत और जैन दर्शन में प्रकाण्ड पण्डित महाकवि पुष्पदंत ने अपने अन्तस्तल के शोकोद्गार प्रकट करते हा बदे ही मार्मिक शब्दों में कहा है :
दीनानाथधनं मदा बहजनं प्रोत्फुल्लवल्लीवनं, मान्याग्वेटपुर पुरन्दरपुरीलीलाहरं मुन्दरम् । धारानाथ नरेन्द्र कोपशिखिना, दग्धं विदग्धप्रियं । क्वेदानींवसति करिष्यति पुनः श्री पुष्पदन्तः कविः ।।
त्र क्षितीणे न पनि प्रदीपे. प्रचण्ड ने लप्प ममीरगोन । विध्यापिते दुप्पमकाल भावात् कथावणेपे मनि रट्ट राज्ये ।।१५।। शिलाहार गजा अपगजिन द्वारा दिये गये दान का ताम्रपत्र शक मं. ६१५ ई. मन ६६३ Important Inscription, from the Baroda State, Vol I, Page ५८
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