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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ १४. इन्द्र-नीति वर्ष-(ई. सन् ६१६-६३०) इसका विवाह भी इसके मामा अम्मन (अर्जुन के पुत्र और कोक्कल के पौत्र) की पुत्री द्विजाम्बा से हुवा । इसने कन्नोज पर आक्रमण कर कुछ समय के लिए वहाँ के राजा महिपाल को राजसिंहासन से अपदस्थ कर दिया।
१५. गोविन्द-सुवर्ण वर्ष-वल्लभ नरेन्द्र-गोज्जिग-नृपतुग-वीरनारायण-रट्टकन्दर्प । इसका शासन ई. सन् ६३० से ६३३ तक रहा।
१६. कृष्ण............"यह १३वें राजा जगत्तुग (कृष्ण चतुर्थ) का पुत्र था । यह ई. सन् '६३३ में राष्ट्रकूट राज्य के सिंहासन पर बैठा। इसका राज्य कब तक रहा, इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता।
१७ अमोघवर्ष (कृष्ण का छोटा भाई)-इसका विवाह त्रिपुरा के कलचुरी वंश के युवराज की पुत्री कुन्दक देवी से हया । इसके राज्यकाल का उल्लेख प्राप्त नहीं होता । इसके पश्चात् इसका बड़ा पुत्र खोटिग राजसिंहासन पर आसीन हुवा ।
१८, खोट्टिग-कोट्टिग-नित्यवर्ष-इसके कोई सन्तति नहीं हुई अतः ई. सन् ६४५ में इसके पश्चात् इसका छोटा भाई कृष्ण राष्ट्रकूट राज्य के राज्य सिंहासन पर बैठा।
१६. कृष्ण (खोटिग का छोटा भाई) कन्नर, अकालवर्ष और निरुपम-ये उपाधि परक नाम भी इसके उपलब्ध होते हैं। इसका शासन काल ई. सन् १४५ से . ६५६ तक रहा। इस राजा के समय में सोमदेव, पुष्पदन्त, इन्द्रनन्दि आदि अनेक बड़े-बड़े जैनाचार्य हुए । यह राष्ट्रकूट वंश का एक प्रतापी राजा था। इसने राजादित्य चोल को ई. सन् ९४६ में युद्ध में परास्त किया। संभवतः शैव धर्मावलम्बी चोलों के अत्याचारों से पीडित जैन संघ की रक्षार्थ यह युद्ध हुअा होगा, ऐसा विद्वानों द्वारा अनुमान किया जाता है । इसके शासन काल में कलचुरी राजा वल्लाल जैन धर्म का परित्याग कर शैव बन गया और जैन संघ पर अत्याचार करने लगा। इस राजा कृष्ण ने अपने साले मारसिंह (गंग वंश के २४ वें राजा) को संभवत: उसके यौवराज्य काल में बड़ी सेना देकर वल्लाल पर आक्रमण किया । गंग युवराज मारसिंह ने वल्लाल को पराजित कर ठीक उसी प्रकार जैन संघ की रक्षा की जिस प्रकार कि भिक्खुराय खारवेल ने पुष्यमित्र शुंग पर अाक्रमण कर जैनों की रक्षा की थीं।
२०. कक्क-कर्क द्वितीय-अमोघवर्ष-कक्कल-कर्कर-वल्लभ नरेन्द्र-नपतग ई. सन् ६५६-६७२ । इसने गुर्जरो, हूणों, चोलों और पाण्ड्यों पर विजय प्राप्त की
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जैन शिलालेख संग्रह भाग २ पृ. १६ २१ लेख मंग्या ३८
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