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________________ २६२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ इसके शासनकाल में उसके बड़े भाई कम्ब का गंग प्रदेश पर राज्य रहा। ई. सन् ८०७ में जिस समय कम्ब का तलवन नगर में शिविर था, उस समय उसने अपने पुत्र शंकर गरण की प्रार्थना पर जैनाचार्य वर्द्धमान को एक ग्राम का दान दिया।' . उपरिचर्चित लेख संख्या १२३ के उल्लेखानुसार गोविन्द तृतीय की आज्ञा से रजावलोक शौच कम्मदेव (गोविन्द तृतीय के भाई) ने पेनडियर नामक ग्राम को कर विमुक्त कर महासामन्त श्री विजय द्वारा निर्मापित मान्यपुर (मलखेड़) के दक्षिणी भाग में अवस्थित जिनेन्द्र भगवान के मन्दिर के लिये कोंण्ड कुन्दान्वय शाल्मली गरण के तोरणाचार्य के प्रशिष्य प्रा. प्रभाचन्द्र को शक सं. ७२४ ई. सन् ८०२-८०३ में दान में दिया । इसने मयूर खण्डी (मोर खण्ड) नासिक के अन्तर्गत राजधानी में रहने हुए शासन किया। ११. अमोघवर्ष प्रथम–सर्व (कक्क)-नृपतुंग (ई. सन् ८१४-८७५)इसने मान्यखेट को अपने राज्य की राजधानी बनाया। इसने युद्ध क्षेत्र में चालुक्यों को करारी हार दी जिससे विवश हो चालुक्यों को विंगुवल्ली में इसके साथ सन्धि करनी पड़ी। इसने शान्तर (शिलाहार) राजवंश के राजा कपदि को कोंकरण का क्षेत्र भेंट स्वरूप प्रदान किया। यह बहुत बड़े भूभाग का सार्वभौम सत्ता सम्पन्न शक्तिशाली शासक था। गृह कलह के परिणामस्वरूप इसके राज्य में तीन बार भयंकर विद्रोह हुए किन्तु इसने उन सभी विद्रोहों को कुचल दिया। तीसरा विद्रोह बड़ा ही उग्र था। क्योंकि इस विद्रोह में अमोघवर्ष के उत्तराधिकारी कृष्ण द्वितीय ने भी प्रारम्भ में विद्रोहियों का साथ दिया था। अमोघवर्ष ने अपने सामन्त वनवासी के शासक बंकेय को इस विद्रोह का दमन करने की आज्ञा प्रदान की। बंकेय के रणांगण में पहुंचते ही कृष्ण (द्वितीय.) ने विद्रोहियों का साथ छोड़ दिया और बंकेय ने विद्रोहियों के दुर्ग को अपने रण कौशल से जीत कर विद्रोह को कुचल दिया । बंकेय ने अनेक विद्रोहियों को बन्दी बना लिया और अनेक को मौत के घाट उतार दिया। बंकेय के इस अद्भुत शौर्य से प्रसन्न हो अमोघवर्ष ने उसे शक सं. ७७२ (ई. सन् ८६०) में जब कि वे मान्यखेटपुर में सेना का पड़ाव डाले हुए थे, बंकेय द्वारा कोलनूर निर्मापित जिन मन्दिर के लिए तलेयूर नामक पूरा ग्राम और कतिपय अन्य ग्रामों की कृषि योग्य भूमियां देवेन्द्र मुनि को दान स्वरूप प्रदान की। इस बंकेय के नाम पर बकापुर बसाया गया। उत्तर पुराण के उल्लेख से यह सिद्ध होता है कि राष्ट्रकूट वंश का ११वां राजा यह अमोघवर्ष जैन धर्म का प्रबल संरक्षक मैसोर ग. रिपोर्ट मन् १९२० पृ०३ जैन शिलालेख संग्रह भाग २, पृ. २४१-२५० लेख सं० १२७ २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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