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________________ द्रव्य परम्पराओं के सहयोगी राजवंश ] [ २८९ २. कृष्ण अकालवर्ष के पश्चात् ई० सन् ४६६ से ६१० ई० के बीच इस वंश के कितने और कौन-२ से राजा हुए तथा उनकी राजधानी कहां थी इसका अद्यावधि उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री में कोई उल्लेख नहीं मिलता। ३. गोविन्द-अप्पायिक गोविन्द-इसके सम्बन्ध में डा० वहलर, श्री फ्लीट और बी लुइस राइस का अनुमान है कि यह राजा उत्तर भारत से दक्षिण में अपने सैन्य दल के साथ आया किन्तु पुलकेसिन ने ई० सन् ६१० के आस पास इसके दक्षिण विजय अभियान को विफल कर किया। दिग्विजय अथवा देश विजय के इस स्वप्न के धलिसात् होने के अनन्तर राजा अप्पायिक गोविन्द मध्य प्रदेश. अथवा उत्तर प्रदेश की ओर लौटा अथवा गुजरात की ओर, इस सम्बन्ध में प्रमाणाभाव के कारण कुछ भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि आज भी उत्तर प्रदेश में भी एवं गुजरात में भी राठोर पर्याप्त संख्या में विद्यमान हैं, जो इतिहासज्ञों के अनुमान से राष्ट्रकूट वंशीय हो सकते हैं। इससे और अन्य प्रमाणों से सिद्ध होता है कि प्राचीन काल में राष्ट्रकूट वंश के राज्य उत्तर प्रदेश में भी थे और गुजरात में भी। इन पूर्व पुरुषों के पश्चात् राष्ट्रकूट वंश के राजाओं का दक्षिण के शासकों के रूप में निम्नलिखित अनुक्रम उक्त विद्वानों द्वारा निर्धारित किया गया है। १-दन्ति वर्मा । २-इन्द्र । ३--गोविन्द । ४-कर्क-कक्क (प्रथम) ५–इन्द्र प्रथग-इसका चालुक्य राज की राजकुमारी के साथ विवाह हया। इन पांचों राष्ट्रकूट वंशीय राजाओं के राज्य काल के सम्बन्ध में अद्यावधि कोई ठोस ऐतिहासिक आधार उपलब्ध नहीं हुआ है।' ६-दन्ति दुर्ग-इस राजा के दन्ति वर्मा, खडगावलोक, पृथ्वी वल्लभ, वर मेघ और साहस तुग-ये विरुद थे। विरुद के रूप में अन्य नाम भी उपलब्ध होते हैं । इसका राज्य काल अनुमानतः ७३० से ७५३ माना जाता है। राष्ट्रकूट वंश का यह छठा राजा बड़ा प्रतापी, साहसी और जैन धर्म के प्रति निष्ठा रखने वाला हुआ। इसने ई० सन् ७३० से ७३५ के बीच की अवधि में चालुक्य राजा कीति वर्मा को रणक्षेत्र में पराजित कर राष्ट्रकूट वंश के एक शक्तिशाली राज्य की नींव डाली। राष्ट्रकूट वंश के राज्य को शक्तिशाली बनाने के कारण इतिहासज्ञ ईसा की पाठवीं शताब्दी के प्रथमार्द्ध से राष्ट्रकूट राज्य का अभ्युदय मानते हैं। श्रवण बेलगोल से प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार न्याय शास्त्र 9 It is only from this point that we have a connection account of the line -B. Lewis Rice EPIGRAFICA Karnataka Vol................Appendix-B Page 71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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