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________________ २८८ ] [ जैन धर्म का मौतिक इतिहास - भाग ३ इस प्रकार के किसी अन्य प्राचीन एवं ठोस प्रमाण के अभाव में दक्षिणा पथ में राष्ट्रकूट वंश के राज्य के प्राद्य संस्थापक के नाम एवं समय के सम्बन्ध में प्रामाणिक रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता । रट्ट वंश के राजानों की वंशावली इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जैन धर्म के प्रति प्रगाढ़ अनुरागश्रद्धा-निष्ठा एवं भक्ति रखते हुए जैन धर्म की सर्वतोमुखी समुन्नति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले इस यशस्वी राजवंश के राजाओं की एक क्रमबद्ध सूचि इतिहास प्रेमियों अथवा शोधार्थियों को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से डा० बूहलर और मि० फ्लीट द्वारा प्रकाशित प्राचीन अभिलेखों के अाधार पर बी लुइस राइस ने बड़ी ही सावधानी के साथ इस राजवंश के राजानों की जो वंशावली तैयार की है उसे ही मान्य किये जाने के अतिरिक्त अद्यावधि अन्य कोई उपाय नहीं है । जैन धर्म के परम हितैषी माश्रय दाता इस राजवंश के राजाओं द्वारा जैन धर्म की अभिवृद्धि के लिये जो योगदान दिया गया, उस सत्रका जो संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है, उसमें इस वंश के राजानों के पूर्वापर अनुक्रम का जहां तक सम्बन्ध है, उसमें अद्यावधि उपलब्ध सामग्री के साथ-साथ मि० राइस द्वारा तैयार की गई सूचि को भी प्राधार माना गया है और इस प्रकार की ऐतिहासिक सामग्री के परिप्रेक्ष्य में इस राजवंश के राजाओंों का अनुक्रम निम्नलिखित रूप में मान्य किया जा सकता है : १. कृष्ण प्रकालवर्ष - जैसा कि लेख सं० ६५ के उद्धरण के साथ ऊपर बताया जा चुका है कि गंगवंशी राजा प्रविनीत ई० सन् ४२५-४७८ के समय में दक्षिणापथ के किन्हीं प्रदेशों पर राष्ट्रकूट वंशीय राजा अकालवर्ष राज्य कर रहा था । इसके एक मंत्री ने वरणे गुप्पे नामक एक ग्राम चन्दरणन्दि भट्टारक को दान में दिया । इस राजा का राज्य कहां से कहां तक था अथवा इसकी राजधानी कहां थी, इस सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक उल्लेख उपलब्ध नहीं होने के कारण कुछ भी नहीं कहा जा सकता । किन्तु इसका राज्य गंगवंश की सीमाओं से लगता हुआ था, यह इस लेख से प्रतिध्वनित होता है । इस लेख से यह भी अनुमान किया जा सकता है कि अकालवर्ष कोई शक्तिशाली राजा होगा अतः उसके मंत्री की प्रार्थना पर गंगराज प्रविनीत ने एक सुन्दर ग्राम जिनालय की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये दान में देना स्वीकार किया। क्योंकि यह दान ई० सन् ४६६ में किया गया इसलिये सुनिश्चित रूपेरण यह राजा अकालवर्ष इस वंश के सातवें राजा कृष्ण अकालवर्षबल्लभ-शुभतुं ग कन्नर ई० सन् ७५३ ७७८ से लगभग २०० वर्ष पूर्ववर्ती होने के कारण सुनिश्चित रूपेण भिन्न था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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