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________________ द्रव्य परम्परागों के सहयोगी राजवंश ] [ २८७ ___ गंजम जिले की पारला की मेडी क्षेत्र में कदम्ब सिंगी और मुनिसिंगी नामक जैनों के दो पवित्र स्थान हैं। कदम्ब सिंगी जैन धर्मावलम्बियों द्वारा प्राचीन काल से पवित्र पहाड़ी मानी जाती रही है। इस पवित्र पहाड़ी के आस-पास ही कदम्बवंशी राजाओं द्वारा निर्मित मुनि-सिंगी नाम से विख्यात विशाल जैन बस्ती थी, जहां बड़ी संख्या में जैन मुनि निवास करते थे। कदम्बवंशी राजाओं के शासनकाल में ये स्थान जैन धर्म के, जैन विद्या के और जैन संस्कृति के गढ़ थे। इसी ताल्लुक (क्षेत्र) के मैदानों में कदम्बों ने प्राचीनकाल में वैजयन्तीपुर बसाकर वहां अपनी राजधानी स्थापित की ।' ये सब तथ्य इस बात के साक्षी हैं कि कदम्बवंशी राजा जैन थे। .. राष्ट्रकूट राजवंश राष्ट्रकूट राजवंश के राजाओं, रानियों, राजकुमारों, राजमाताओं, सेनानायकों, मंत्रियों एवं प्रजाजनों ने जैनधर्म की सर्वतोमुखी समुन्नति के लिये जो महत्वपूर्ण योगदान दिया, उसे प्राचीन शिलालेखों और शोधकर्ताओं के शोधपूर्ण निबन्धों को पढ़कर तीर्थकर काल के धर्म धुरा धौरेय भरत, श्रीकृष्ण, श्रेणिक प्रादि राजाओं की स्मृति स्मृति-पटल पर उभर आती है। - राष्ट्रकट राजवंश के राज्य का दक्षिण में सर्व प्रथम अभ्युदय किस समय हुअा, इस सम्बन्ध में अन्तिम निर्णायक शोध न हो सकने के कारण इतिहासज्ञ अभी तक किसी सर्व-सम्मत निर्णय पर नहीं पहुंच पाये हैं। इस राजवंश के राजामों से सम्बन्धित लेखों में सब से पुराना अभिलेख मर्करा के खजाने से प्राप्त गंगवंशी राजा प्रविनीत द्वारा दिये गये दान का शक सं० ३८८ तदनुसार ई. सन् ४६६ का एक ताम्र पत्र है । इस ताम्र-पत्र में उल्लेख है कि अकालवर्ष पृथ्वी वल्लभ (राष्ट्रकट वंशीय राजा) के मंत्री ने वरणदे गुप्पे नामक एक ग्राम शक सं० ३८८ की माध शुक्ला पंचमी सोमवार के दिन स्वाति नक्षत्र में गंगवंशी महाराजाधिराज अविनीत से प्राप्त कर मूल संघ कौण्डकुन्दान्वय देशीय गण के गुणनन्दि भट्टार के शिष्य चन्दगन्दि भट्टार को तलवन नगर के श्रीविजय जिनालय के लिये दान में दिया ।। इस ताम्र पत्राभिलेख की भाषा से अनुमान किया जाता है कि राष्ट्रकूट वंशीय राजा अकालवर्ष पृथ्वीवल्लभ एक शक्तिशाली साम्राज्य के महाराजाधिराज अविनीत ई० सन् ४६६ के आसपास के समय में उनके अधीनस्थ राजा थे। 9 The place of Parlaki medi Agency of the Ganjam District has called Kadamba-singi and Muni-siogi suggesting a sacred hill (Sacred to Jaina) a colony of Jain Munis ocar about it. The place names are significant and suggestive of religious culture. At a latter date, it was in this talug, that the Kadambas built their Capital Vaijayantipuri in the plains. -Epigraphica Jainica (chapter II) in Studies in South Indian Jainism - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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