SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रव्य परम्पराओं के सहयोगी राजवंश ] [ २८३ ८-रवि वर्मा (ई. सन् ४६० से ५३७) । मृगेश वर्मा के पश्चात् उसका पुत्र रवि वर्मा कदम्ब वंश के राज-सिंहासन पर आसीन हुआ। यह बड़ा ही प्रतापी राजा हुआ है। इसे अपने प्रारम्भिक शासन काल में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसी वंश की दूसरी शाखा के संस्थापक कृष्ण वर्मन् के पुत्र विष्णु वर्मन ने पल्लवों की सहायता से रवि वर्मा पर ई० सन् ४६७ में आक्रमण किया। उस युद्ध में रवि वर्मा शत्रुनों को पराजित कर विजयी हुआ। विष्णु वर्मन् उस युद्ध में मारा गया। रवि वर्मा ने काञ्चीपति चण्डदण्ड (सम्भवतः पल्लव राज) के राज्य को विनष्ट कर पलाशिका (वर्तमान में हलसी) में अपनी राजधानी स्थापित की। जैन धर्म के प्रति इसकी प्रगाढ़ प्रीति थी। यह जैन धर्म का प्रबल समर्थक था। वर्षा काल में यापनीय साधुनों की भोजन व्यवस्था के लिये और प्रति वर्ष निर्धारित तिथियों पर जिनेन्द्र भगवान् के पूजा-अर्चना महोत्सवों को ठाठ से मनाने का इसने प्रजाजनों को आदेश दिये। रवि वर्मन की मृत्यु हो जाने पर उसकी रानी अपने पति के साथ चिता में जलकर सती हो गई।' -हरि वर्मा (ई० सन् ५३७---५४७) । रवि वर्मा की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र हरि वर्मा कदम्ब राजवंश के सिंहासन पर बैठा जो कि अशक्त एवं अकुशल राजा सिद्ध हुआ। इसके एक शक्तिशाली सामन्त पुलकेसिन (प्रथम) चालुक्य ने इसकी अशक्तता का लाभ उठा कर इसके विरुद्ध विद्रोह किया और उसने बादामी में अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया। कृष्ण वर्मा द्वारा संस्थापित कदम्ब राजवंश की दूसरी शाखा के राजा के साथ हरि वर्मा का संघर्ष हुआ और उस गह कलह के परिणामस्वरूप हरि वर्मा के साथ ही कदम्ब राजवंश की मूल शाखा ई० सन् ५४७ में समाप्त हो गई। कदम्ब राजवंश का स्थान चालुक्य राजवंश ने ग्रहण किया। यद्यपि चालुक्य राजवंश के अभ्युदय के साथ ही ईसा की छठी शताब्दी के मध्य भाग में कदम्ब राजवंश का सूर्य अस्त हो गया तथापि सोरब से प्राप्त शिलालेखों से यह ज्ञात होता है कि कदम्ब वंशी शासक अपनी पैतृक राजधानी बनवासी बारह हजारी में ईसा की दशवीं शताब्दी के सात दशकों तक अधीनस्थ सामन्तों के रूप में रहे और ई० सन् ६७१ में वे वनवासी बारह हजारी के सम्भवतः स्वतन्त्र शासक बन गये। इस प्रकार कदम्ब वंशी राजाओं ने शक्ति संचय कर पुनः अपनी स्थिति को सुदृढ़ बनाया और वे ई० सन् १३०७ तक बनवासी बारह हजारी पर शासन करते रहे । उन बनवासी के उत्तरवर्ती कदम्ब वंशी राजाओं का समय निम्नलिखित रूप में उपलब्ध होता है :शान्ति वर्मा (द्वितीय) ई० सन् ६७१ तैलह देव ॥ ६७५ १ सोरब का शिला लेख (सं० ५२३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy