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________________ द्रव्य परम्पराओं के सहयोगी राजवंश ] [ २८१ प्रदेश ( मालव) तक अपने राज्य का विस्तार किया और अनुमानतः ई. सन् ३४० से ३७० तक राज्य किया । उपरि वर्णित लेख संख्या २०६ में कदम्ब राजवंश के प्रथम राजा का नाम मयूर शर्मन् न लिख कर मयूर वर्मन लिखा गया है । इसमें उल्लेख है कि इसने मोर के पंखों का बना पट्ट अपने शिर पर धारण किया, इसलिये वह मयूर वर्मन् के नाम से विख्यात हुआ । कतिपय उत्तरवर्त्ती अभिलेखों में उल्लेख प्राप्त होता है कि मयूर शर्मा ने १८ अश्वमेध यज्ञ किये किन्तु अनेक विद्वानों ने उन अभिलेखों की प्रामाणिकता में सन्देह अभिव्यक्त किया है । २ - कंगु वर्मन - अपर नाम स्कन्द वर्मन् ( ई. सन् ३७० से ३६५ ) अजन्ता के अभिलेख से अनुमान किया जाता है कि सम्भवतः यह कदम्ब वंशी राजा वाकठिक राजा विन्धसेन का समकालीन और कुन्तल का वही कदम्ब वंशी राजा हो जिसका विन्धसेन द्वारा युद्ध में पराजित किये जाने का प्रजन्ता के अभिलेख में उल्लेख है । इस प्रकार इसका शासन काल ई. सन् ३७० से ३६५ तक का अनुमानित किया जाता है। कंगवर्मन् ने धर्म महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी । ३ - भगीरथ ( ई. सन् ३६५ से ४२० ) कंगु वर्मन के पश्चात् उसका पुत्र भगीरथ कदम्ब राज्य के सिंहासन पर बैठा । इसने कदम्ब राज्य की नींवों को सुदृढ़ किया । इतिहासविदों का अभिमत है कि गुप्त सम्राट् चन्द्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमादित्य ने भगीरथ के यहां कालीदास को अपना राजदूत बनाकर भेजा । " इससे विदित होता है कि भगीरथ एक प्रतापी राजा था । इसका शासनकाल ई. सन् ३६५ से ४२० तक अनुमानित किया जाता है । ४ - रघु अथवा रघुपार्थिव ( ई. सन् ४२० से ४३० ) कदम्बराज भगीरथ के रघु और काकुत्स्थ वर्मा नामक दो पुत्र थे । महाराजा भगीरथ के निधन पर रघु राज सिंहासन पर बैठा और उसने अपने लघु भ्राता काकुत्स्थ वर्मा को युवराज बनाया । हलसी (जिला बेलगांव) से प्राप्त (ईसा की पांचवीं शताब्दी के ) काकुत्स्थ वर्मा के दान पत्र में भी इसे ( काकुत्स्थ वर्मा को ) " कदम्बानां युवराज : " लिखा है । ५ - काकुत्स्थ वर्मा (ई. सन् ४३० से ४५० ) रघु के पश्चात् कदम्ब वंश का ५वां राजा काकुत्स्थ वर्मा हुआ । इनके राज्य काल में राज्य एंव प्रजा ने चहुंमुखी प्रगति की । ताल गुण्ड के अभिलेख से विदित होता है कि काकुत्स्थ वर्मा के शासन काल में सर्वत्र शान्ति और समृद्धि का साम्राज्य रहा । पड़ोसी राजाओं के साथ आपका बड़ा मधुर सम्बन्ध रहा और वे सब इनका बड़ा सम्मान करते थे । काकुत्स्थ वर्मा ने अपनी एक पुत्री का विवाह गुप्त सम्राट् चन्द्रगुप्त (द्वितीय) १ दी क्लासिकल एज ( भारतीय विद्या भवन, बम्बई ) पृष्ठ १८३, २७२ २ लेख सं० ९६ जैन शिलालेख संग्रह भाग २, पृष्ठ ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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