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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
पुत्राणां सप्तलोक मातृभिस्सप्त मातृभि वद्धितानां कार्तिकेय परिरक्षण प्राप्त कल्याण परम्पराणां चालुक्यानां कुलमलंकरिष्णो ।
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पद्धत लेखों में विख्यात क्षत्रियकुल के चालुक्यवंशी राजाओं के समान ही कदम्ब राजवंश के राजानों को भी षण्मुख कार्तिकेय द्वारा संरक्षित सप्तमातृara द्वारा स्वामिकार्तिकेय महासेन के समान ही परिपालित मानव्यगोत्र वाले और हारीति के पुत्र ( वंशज) बताने के साथ-साथ प्राचीन राजर्षियों के समान बताया गया है । इससे निर्विवाद रूपेण यह सिद्ध होता है कि कदम्ब राजवंश वस्तुतः क्षत्रियों की ही एक शाखा थी । चालुक्यों के समान मानव्य गोत्र - हारीति पुत्र स्वामी महासेन - सप्त मातृकाओं द्वारा अभिवर्द्धत आदि विशेषण कदम्बों के लिए प्रयुक्त देखकर अनुमान किया जाता है कि प्राचीन काल में संभव है चालुक्यों (सोलंकियों) और कदम्बों के पूर्व पुरुष किसी एक ही क्षत्रिय राजा की संतति रहे हों । एक दो विद्वानों की सर्वथा अपुष्ट कल्पना के अनुसार यदि कदम्बवंशी राजा ब्राह्मण जाति के होते तो लेख सं. १०५ में उनके लिये प्रादिकाल राजर्षि बिम्बानां के स्थान पर "आदिकाल ब्रह्मर्षि बिम्बानां" अथवा " परशुराम बिम्बानां" का प्रयोग किया जाता ।
इन पुष्ट प्रमाणों के अतिरिक्त कदम्बवंशी राजाओं की राज कन्याओं के विवाह गंगवंशी क्षत्रिय राजकुमारों एवं शान्तर राजवंश के राजकुमारों के साथ होने के जो प्राचीन अभिलेखों में उल्लेख आज भी उपलब्ध होते हैं, वे इस बात के प्रबल साक्षी हैं कि कदम्बवंशी राजा क्षत्रिय थे । यह तो एक निर्विवाद तथ्य है। कि प्राचीन काल में विवाह की जो मर्यादा मनु आदि द्वारा स्मृतियों में निर्धारित की गई थी उससे ब्राह्मण कन्या के साथ क्षत्रिय कुमार के विवाह का कड़ाई के साथ निषेध किया गया था ।
कदम्ब वंशी राजानों का शासन काल
१ - मयूर शर्मन ( ई० सन् ३४० - ३७० ) जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, इस राजवंश का संस्थापक और प्रथम राजा मयूर शर्मन् था । काञ्चीपति पल्लवराज के सीमावर्ती वनवासी प्रदेश को विजित कर इसने एक स्वतन्त्र राज्य की नींव डाली । मयूर शर्मन् ने अमरार्णव (पश्चिमी समुद्र के तट से लेकर प्रेमार
१ लेख संख्या ६५, १०५, १२१, १२२ जैन शिलालेख संग्रह, भाग २, माणिक्यचन्द्र दि. जैन ग्रन्थ माला
२ शान्तर राजवंश के राजा त्यागी शान्तर का विवाह कदम्ब राजा हरिवर्मा की राजकुमारी नागल देवी के साथ हुआ । देखिये एपिग्राफिका करर्णाटिका वोल्यूम VIII पृष्ठ ६ ।
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