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द्रव्य परम्पराओं के सहयोगी राजवंश ]
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सोरब से प्राप्त अभिलेख सं. २६२ में उल्लेख है कि कदम्बराज कीर्ति वर्मा अथवा कीर्तिदेव ( ई. सन् १०७० से ११०० ) की महारानी मालल देवी ने शक सं. ६६७ तदनुसार ई. सन् १०७५ में कुप्पुटूर के पार्श्वदेव चैत्यालय को सुसंस्कृत करवा कर उसका नाम ब्रह्म जिनालय रखा और उस ब्रह्म जिनालय के लिये कुन्द कुन्दान्वय-मूल संघ, क्रापूर गण, तित्रिणीक गच्छ के यापनीय संघ के प्राचार्य वन्दणिगे तीर्थ तथा अनेक मन्दिरों के मुख्य पुरोहित सिद्धान्त चक्रवर्ती पद्मनन्दि को बहुत सी भूमियों का दान दिया। इस अवसर पर महारानी मालल देवी ने वनवासी राज्य के १८ मन्दिरों के पुरोहितों के साथ वनवासी मधुकेश्वर को बुलवाकर वहां के ब्राह्मणों से पार्श्वदेव चैत्यालय का नाम ब्रह्म जिनालय रखवाया। महारानी मालल देवी ने अपने पति महाराज कीर्तिदेव से भी बहुत सी भूमि प्राप्तकर मूर्ति की दैनिक पूजा और साधुओं के आहार के लिये यापनीय आचार्य पद्मनन्दि को दान में दी ।
इन सबसे और उपरिवर्णित अभिलेखों से यह तो निर्विवाद रूपेण सिद्ध हो जाता है कि कदम्बवंशी राजाओं ने अपने ६०० वर्ष के सुदीर्घ शासनकाल में जैन धर्म को उल्लेखनीय प्रश्रय एवं राज्याश्रय देकर दानादि द्वारा जैन धर्म के प्रचारप्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
कदम्बवंशी राजाओं के लेख सं. ६७, ६८, १००, १०३, १०४ और १०५ के प्रारम्भ में कदम्बवंशी राजाओं के लिए जो विशेषरण प्रयुक्त किये गये हैं, उन विशेषणों से कदम्बवंशी राजाओं के वर्ण का निर्णय करने में बड़ी सहायता मिल सकती है । इन लेखों में कदम्ब राजवंश का परिचय देते हुए जो-जो वाक्य उल्लिखित हैं, वे इस प्रकार हैं
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"सिद्धम् । स्वस्ति स्वामि महासेन मातृगणानुध्याताभिषिक्तानां मानव्यस गोत्राणां हारितीपुत्राणां प्रतिकृत स्वाध्याय चर्चा पारगाणा ( लेख सं. १०५ ) प्रादिकाल राजपि विम्वानां ग्राश्रितजनम्वानां कदम्बानां २
अल्म जिल्हा कोल्हापुर से शक स. ४११ के ताम्रपत्राभिलेख में चालुक्य वंशी क्षत्रियों के लिये भी इसी प्रकार की शब्दावलि प्रयुक्त की गई है । भगवान् महावीर की स्तुति के पश्चात् इस अभिलेख में चालुक्य राजवंश का परिचय देते हुए लिखा है- श्रीमतां विश्व - विश्वम्भराभि संस्तूयमान मानव्यस गोत्राणां हारीति
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कृष्ट का अभिलेख सं
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२ जैन शिलालेख संग्रह भाग २, पृ. ६७ से ८४
जैन जिलालेख संग्रह भाग २५ से ६०
२०६ जैन शिलालेख संग्रह भाग २, पृ. २६६-२७१ (माणिक्यचन्द्रदि जैन ग्रन्थ माला )
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