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________________ २७६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३ को वहन करने के लिये बसन्तवाटिका नामक ग्राम का दान कूर्चकों के वारिषेणाचार्य के संघ को प्रदान किया । इस लेख से यह तथ्य प्रकाश में प्राता है कि कदम्ब राजवंश के अन्यान्य सदस्य भी जैन धर्म के उपासक थे | लेख सं० १०४ में उल्लेख है कि रवि वर्मा के उत्तराधिकारी पुत्र महाराजा हरिवर्मा ने अपने सामन्त सेन्द्रक राजभानु शक्ति की प्रार्थना पर पलासिका में अहिरिष्टि नामक श्रमण संघ की सम्पत्ति माने जाने वाले जिनेन्द्र चैत्यालय की सभी प्रकार की आवश्यक व्यवस्था के लिये उक्त संघ के प्राचार्य धर्म्मनन्दि को यरदे नामक ग्राम का दान किया । इस लेख से यह भी सिद्ध होता है कि कदम्ब वंश के न केवल राजा ही अपितु इस राजवंश के अन्य सदस्य और सामन्त भी जैन धर्म के अनुयायी एवं परमोपासक थे 1 लेख सं ० ६७ में कदम्ब वंशी काकुत्स्थान्वयी शान्ति वर्मा के पुत्र द्वारा अपने महाराजा मृगेशवर्मा द्वारा अपने शासनकाल के राज्य के तीसरे वर्ष में श्रर्हद् भगवन्तों की मूर्तियों के सम्मार्जन उपवेशन, एवं मन्दिर की पुष्पवाटिका आदि के लिये वृहत्परघूरे के चैत्यालय को ४६ निवर्तन भूमि का दान दिये जाने का उल्लेख है । 3 लेख सं० ६८ में उल्लेख है कि कदम्ब राज विजय शिव मृगेश वर्मा ने कालबङ्ग नामक ग्राम के तीन भाग कर के एक भाग सुविशाल अर्हत शाला के अर्हत जिनेन्द्र भगवन्तों के लिये, दूसरा भाग वीतराग प्ररूपित जिन धर्म का आचरण करने अहर्निश तत्पर श्वेताम्बर महाश्रमण संघ के उपभोगार्थ और तीसरा भाग निर्ग्रन्थ महाश्रमण संघ के उपभोग के लिये दान में दिया । ४ लेख सं०६६ में उल्लेख है कि कदम्ब राज काकुत्स्थ के पौत्र एवं शान्ति वर्मा के पुत्र कदम्बवंशी महाराजामृगेश ने अपनी विजय के आठवें वर्ष में पलाशिका नगर में यापनीयं श्रमण संघ, निर्ग्रन्थ श्रमण संघ और कूर्चक श्रमरण संघ को मातृ सरित से लेकर इंगिरणी संगम पर्यन्त ३३ निवर्तन कृषि भूमि अर्हद् भगवन्तों के नाम पर दान में दी । हलसी से प्राप्त हुआ कदम्ब नरेश रवि वर्मा का उक्त ताम्रपत्रीय अभिलेख ( लेख सं० १०० ) ऐसे तीन तथ्यों पर प्रकाश डालता है जो जैन इतिहास की दृष्टि से बड़े ही महत्वपूर्ण हैं । कदम्बवंशी महाराजा काकुत्स्थ, उसके पुत्र शान्ति वर्मा उसके , जैन शिलालेख संग्रह भाग २ वही 3 वही २ ४ वही ५. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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