SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रव्य परम्पराओं के सहयोगी राजवंश ] [ २७५ कोषर भट्ट, कोड् भट्ट, मोह भट्ट आदि भट्ट स्थविरों (विद्वानों) के भट्टान्त नाम अद्यावधि विद्यमान हैं, जिन्हें देखकर अनुमान लगाया जाता है कि कदम्बों ने कलिंग में स्थान-स्थान पर विद्वानों को रखकर कलिंग की प्रजा को अनेक प्रकार की विद्याओं, कला, शिल्पों और समुन्नत भारतीय संस्कृति की कलिंग वासियों को शिक्षा दी थी। इन सब तथ्यों पर यद्यपि अद्यावधि गम्भीर शोध की आवश्यकता है तथापि इन तथ्यों से यह तो प्रकट होता है कि कदम्ब राजवंश वस्तुत: बहुत प्राचीन राजवंश था और जैन धर्म का अनुयायी था । कदम्ब राजवंश की उत्तरवर्ती शाखा के तो अनेक शिलालेख उपलब्ध भी हैं । कदम्ब राजवंश दक्षिणा पथ का प्राचीन राजवंश था । लेख संख्या ६६-१०५ तक के १० लेखों से' लेख सं. २८२ से एवं अन्य पुरातत्व सामग्री से यह प्रकट होता है कि इस वंश के प्रायः सभी राजाओं ने अपने २ शासन काल में जैन धर्म के प्रति श्लाघनीय सम्मान प्रकट करते हुए जैन धर्मावलम्बियों को अपनी ओर से तथा अपने राज्य की ओर से सदा संरक्षरण प्रदान किया । उपलब्ध अभिलेखों से यह भी सिद्ध होता है कि इस राजवंश के कतिपय राजा तो जैन धर्म में प्रगाढ़ प्रास्थावान् और जिनेन्द्र भगवान् के परम उपासक थे । इस राजवंश के पांचवें महाराजा काकुत्स्थ वर्मा की राजकुमारी का विवाह प्रारम्भ से अन्त तक जैन कहे जाने वाले गंग राजवंश के पांचवें महाराजा तडंगाल माधव (माधव तृतीय ) के साथ किया गया था । लेख सं. ६५, १२१ और १२२ में गंगवंशी महाराजा काकुत्स्थ वर्मा के उत्तराधिकारी पुत्र महाराजा कृष्णवर्मा का भागिनेय ( भानजा ) बताया गया है । 3 लेख सं० १०५ से विदित होता है कि काकुत्स्थ वर्मा के एक पुत्र कृष्णवर्मा ने अपने अग्रज शान्ति वर्मा से विद्रोह कर अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया । इसका पुत्र युवराज देव वर्मा जैन धर्मावलम्बी था । जिस समय युवराज देववर्मा त्रि पर्वत प्रदेश का शासक था उस समय उसके द्वारा यापनीय संघों को सिद्ध केदार ग्राम में प्रर्हत् प्रभु के चैत्यालय के जीर्णोद्धार, पूजा महिमा प्रादि हेतु कृषि भूमि प्रदान किये जाने का इस लेख में उल्लेख है । ४ लेख सं० १०३ में उल्लेख है कि कदम्बराज हरिवर्मा ने अपने चाचा शिवरथ के सत्परामर्श से पलाशिका में सिंह सेनापति के पुत्र मृगेश द्वारा स्थापित जिना - यतन में प्रतिवर्ष प्रष्टान्हिक महोत्सव एवं समस्त संघ के भोजन आदि के व्यय भार १. २. 3. जैन शिलालेख संग्रह, भाग २ माणिक चन्द्र दि० जैन ग्रन्थ माला समिति भाग १ भाग २ वही "3 " Jain Education International " }} " 33 37 For Private & Personal Use Only " www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy