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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ वैजयन्ती पुर नामक नगर बसा कर बनवासी बारह हजारी राज्य की स्थापना की। कलिंग का जयन्तिपुर जयन्त गिरि जयपुरा एवं जयनगर और कर्णाटक के बनवासी बारह हजारी राज्य की कदम्बों द्वारा बसाई गई राजधानी पलासिका अथवा वैजयन्ती एक इतिहास सिद्ध तथ्य है। उत्तरकालीन कदम्बों की राजधानी जिस प्रकार कर्नाटक में पलासिका में थी उसी प्रकार पूर्वकालीन कदम्बों की कलिंग में राजधानी गंजम जिले में पलासा थी। इस प्रकार पलासा पलासिका जयन्तीपुर अथवा वैजयन्ती' वस्तुतः पूर्ववर्ती कदम्बगिरि जयन्तगिरि जयनगरम् आदि नाम कदम्बों के साथ इन उत्तरवर्ती कदम्बों के घनिष्ठ सम्बन्ध को जोड़ने वाली सुदृढ़ कड़ियां हैं । कलिंग में कदम्ब गुड़ा नाम के कम से कम १७ गांवों और कदम्ब सिंगी कदम्ब गिरि की विद्यमानता इस बात का प्रबल प्रमाण है कि ईसा की पहली-दूसरी शताब्दी में कदम्ब राजवंश का कलिंग में राज्य था और वे शताब्दियों तक कलिग के निवासियों के रूप में और शासकों के रूप में वहां सत्ता में रहे। विजगा पट्टम जिले के रायगढ़ क्षेत्र में एक गांव का नाम कदम्बगिरि गुड़ा है। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि कलिंग से कदम्ब राज्य की समाप्ति कर सम्भवत: गंगवंशी जैन राजवंश अथवा किसी अन्य विजेता ने शकारि के समान ही कदम्बगिर विरुद धारण कर इस ग्राम को बसाया होगा। उस प्रदेश के गांवों के नामों का सूक्ष्म दृष्टि से पर्यवेक्षण करने पर पता चलता है कि वहां आज भी यत्र-तत्र पर्याप्त संख्या में जैनों और भूजों द्वारा बसाये गये ग्राम हैं।
३. कलिंग के कोल और खोंण्ड (गोंड) जाति के लोगों में परम्परागत पीढ़ियों से यह धारणा चली रही है कि कोलों और खोण्डों ने कलिंग की धरती से जैनों एवं भूयों (भूजों) को बाहर ढकेल दिया।
रामास्वामी अय्यंगर और शेष गिरिराव-इन दोनों विद्वानों की मान्यता है कि वे जैन जिन्हें कोलों एवं खोण्डों ने कलिंग से बाहर निकाला वे वस्तुतः कदम्ब राजवंश के ही शासक थे और बहलर के मन्तव्यानुसार आज जो तेलुगु-कन्नड़, आदि जो दक्षिणी भारत की लिपियां हैं वे वस्तुतः उन पूर्ववर्ती कदम्बों की वर्णमाला का ही परिष्कृत स्वरूप है।
विजगापट्टम जिले की विस्सय कटक, जैपुर, कोरपट, भल्कन गिरि, नवरंगपुर इन क्षेत्रों में कंचगी भट्ट, रानी भट्ट, अमल भट्ट, दबू भट्ट, वुष्क भट्ट,
देखिये जैन शिलालेख संग्रह, भाग २ लेख सं० ६६ । इसमें उत्तरकालीन कदम वंश के राजा मगेश वर्मा के वैजयन्ती ( जयन्तीपुर, वर्तमान वनवासी ) में निवास करने का उल्लेख है। Shri Buhler is of opinion that it was the Kadamba script that latterly developed into the Telugu-Canarese or Andhra, Karnataki variety of South Indian Alphabets.
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