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________________ द्रव्य परम्परामों के सहयोगी राजवंश ] [ २७३ २. कदम्ब वंशियों का दल-बल मगध से दक्षिण की ओर बढ़ता हा जब कलिंग में आया तो वहां उसने कदम्ब राज्य की स्थापना की। कदम्ब वंशी राजा जैन धर्मावलम्बी थे अतः यह स्वाभाविक ही था कि कलिंग में जहां वे बसे, जहां उन्होंने राज्य किया उन स्थानों में जैन धर्म के साथ-साथ अपने वंश की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के प्रयास करते। उन्होंने एक पर्वत का कदम्बगिरि नाम रखा। शधुंजय माहात्म्य में जैनों के जिन पवित्र पर्वतों के नाम दिये गये हैं, उनमें कदम्बगिरि का भी उल्लेख है। केवल यही नहीं, अपितु कलिंग में अपने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना कर कदम्बों ने अनेक नगरों, ग्रामों, बसतियों आदि का निर्माण कर वहां निवास किया। उन वसतियों आदि के नाम आज भी इस बात की साक्षी देते हैं कि वे स्थान, वे ग्राम, वे वसतियां, वे धर्म स्थान कदम्बों द्वारा स्थापित किये गये थे। गंजम जिले की पारला की मेडी तालुका में कदम्ब सिंगी' नामक पहाड़ी है जो कदम्बों के शासन काल से ही जैनों की पवित्र पहाड़ी के रूप में विख्यात है। यहीं पास में मनि सिंगी (मुनि शृगी) नामक स्थान है, जहां जैन मुनियों की वसदी थी जिसके आस-पास जैन मुनि तपश्चरण करते थे। इसी के समीप काला नगर में कदम्बों ने अपने राज्य को सुदृढ़ करने के पश्चात् वहां के वनों को साफ कर मैदान में वैजयन्तीपुर नामक नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। जैपुर (भगवान महावीर के तृतीय पट्टधर प्रभव स्वामी की जन्मभूमि) क्षत्र में कदम्बों ने अपने राजा जयवर्मा के नाम पर जयपुरा एवं जयनगरम् बसाकर एक पहाड़ का नाम जयन्तिगिरि रखा। जैपुर क्षेत्र में कदम्ब गुड़ा नाम के न केवल एक अथवा दो अपितु आठ ग्राम हैं । विस्सम कटक (विश्वम्भर देव कटक) क्षेत्र में एक गांव का नाम कदम्ब गुड़ा और दूसरे का ककदम्ब है । गुड़ा शब्द की उत्पत्ति द्रविडियन भाषा के कूडम् शब्द से हुई है जिसका अर्थ है सम्पात अथवा सामूहिक रूप से एकत्रित हो साथ-साथ में बसे हुए, इसलिये इन ग्रामों का नाम कदम्ब गुड़ा रक्खा गया। यह एक महत्वपूर्ण विचारणीय तथ्य है कि जिस प्रकार पूर्वकालीन कदम्बों ने मगध से दक्षिण की ओर प्रयाण करते समय कलिंग में अपनी राज्य सत्ता स्थापित करने के पश्चात् वहां के मैदानी प्रदेश के वनों को साफ कर वहां वैजयन्तीपुर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया उसी प्रकार उत्तरवर्ती कदम्बों ने भी कर्णाटक में काञ्चीपति पल्लव राज के कुन्तल राज्य के सीमान्त वन्य प्रदेश को साफ कर वहां ' जैन शिलालेख संग्रह, भाग २ लेख संख्या २७७ पृष्ठ ४२२ पर अति प्राचीन समय में कलिंग राज भगदत्त का गंगराज के रूप में उल्लेख है और इसे गंग वंश का राजा बताया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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