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________________ २७२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास--भाग ३ गंगवंश की मूल शाखा के अन्तिम महाराजाधिराज से पश्चाद्वर्ती इसके वंशजों का अनुक्रम निम्नलिखित रूप में मिलता है : उदयादित्य (गंगरस का पुत्र) गंग पेम्मीवडि भुवनैकवीर। यह क्रमश: भुवनैकमल्ल और विक्रमादित्य त्रिभूवनमल्ल इन दो चालुक्य राजाओं का एक महायशस्वी सेनापति और महा मंगलेश्वर था । ये दोनों चालुक्य राज उदयादित्य की भूया के लड़के थे। इसका महामण्डलेश्वर काल ईस्वी सन् १०७० से ११०२ तक माना जाता है। यह गंगवंशी नहीं अपितु ब्रह्म क्षत्रिय थे। इनका परिचय जैन सेनापतियों के शीर्षक के नीचे अन्यत्र दिया जायगा। कदम्ब राजवंश मयर वर्मन अथवा मयर शर्मन को कदम्ब राजवंश का संस्थापक माना जाने के कारण सामान्य रूप से प्राय: सभी इतिहासविदों ने इस राजवंश का उद्भव काल ई० सन् ३४० मान्य किया है, किन्तु इस राजवंश के उद्भव काल के सम्बन्ध में यशस्वी इतिहासज्ञ एम. एस. रामास्वामी अय्यंगर और बी. शेषगिरि राव ने अनेक ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये हैं, जिनसे इस राजवंश का समय ईसा की दूसरी शताब्दी अथवा उससे भी पूर्व का प्रतीत होता है। इन दोनों विद्वानों की मान्यता है कि कदम्ब राजवंश एक प्राचीन जैन राजवंश रहा है। इन दोनों विद्वानों ने अपने शोधपूर्ण इतिहास ग्रन्थ "स्टडीज इन साउथ इंडिया जैनिज्म' के द्वितीय अध्याय में कदम्ब राजवंश के प्राचीन राजवंश होने के सम्बन्ध में जो विचारणीय तथ्य प्रस्तुत किये हैं, वे इस प्रकार हैं :-- १. श्री टेलर द्वारा रचित प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों अथवा पत्रों को सूची (वोल्यम III पृष्ठ ६०) में एक कन्नड़ रचना का उल्लेख है, जिसमें कदम्ब वंश के उन राजाओं की नामावलि दी हुई है जो कि मगध में राज्य करते थे। इस प्रकार की स्थिति में जब कदम्ब राजवंश ने मगध से दक्षिण में आने का निश्चय किया तो कोशल और लिग प्रदेश में माना उनके लिये अनिवार्य हो गया क्योंकि मगध से दक्षिण की अोर सामूहिक कूच का यही एक मात्र सभी दृष्टियों से निरापद और सुखद मार्ग सिद्ध हो सकता था। __ श्री टेलर के इसी तीसरे वोल्यूम के पी पी ७०४-५ पर एक मराठी कृति का उल्लेख है, जिसमें उत्तरकालीन कदम्ब वंशी राजा मयूर वर्मा के उत्तर से दक्षिण में आने का विवरण दिया हया है। इस प्रकार उत्तरी भारत से कदम्ब-गजवंश के दक्षिण भारत में पाने का अविस्मरणीय प्राख्यान एक थाती के रूप में हमारे प्राचीन साहित्य में सुरक्षित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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