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________________ २७० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ हए-"अन्ततोगत्वा इस विशाल राज्य का उत्तराधिकारी उत्पन्न हो ही गया है।"कई दिनों तक आनन्दोत्सव मनाया । उस पुत्र का नाम नीतिमार्ग · रक्खा और अपने राजप्रासाद में बड़े ठाठ-बाट और दुलार से उसका लालन-पालन किया । रक्कस गंग ने चट्टल का विवाह टोंडेनाड़ ४८ हजार के महाराजा कांचिपति पल्लवराज काडुवेटि के साथ और कंचनदेवी का विवाह शान्तर राजवंश के राजा वीरदेव के साथ किया । हेमसन्ति के शिष्य आचार्य श्री विजय इसके गुरु थे। (२७) जयद् अंककार-कौंगणि वेडेंग-कावेरी बल्लभ (ईस्वी सन् ६६E से अनुमानतः १०२२) । (२८) गंग रस-सत्य वाक्य (ईस्वी सन् १०२२ से १०६४) यह राजा परम श्रद्धानिष्ठ जिनोपासक था। इसकी बाचलदेवी नामक एक रानी ने अपने बड़े भाई बाहुबलि से परामर्श कर गंगवाडी के अन्तर्गत मंडलिनाडु के तिलक स्वरूप बनिकेरे नगर में एक भव्य जिनालय का निर्माण करवाया। चालुक्य विक्रम के राज्य के ३७ वें वर्ष में (ईस्वी सन् १११२) में राजा ने कुमारों एवं मन्त्रियों की उपस्थिति में बदंगेगे और बनिगेरे नगरों की कुछ भूमि, कोलहनों और चुगी का पार्श्व प्रभु की पूजा अर्चना एवं मन्दिर की व्यवस्था के लिये दान दिया।' इसकी गंग राजकुमारी मयलल देवी चालुक्यराज सोमेश्वर (ईस्वी सन् १०४२ से १०६८) को पटरानी थी.। राजेन्द्र चोल ने ईस्वी सन् १०६४ में गंगरस पर प्राक्र मण कर उसे परास्त किया और इस प्रकार लगभग ६०० वर्षों तक न्याय नीतिपूर्वक शासन करने के पश्चात् गंग राजाओं की राजधानी तलकाड् के पतन के साथ ही गंग राजवंश का शक्तिशाली एवं जैन धर्मानुयायी राज्य समाप्त हो गया। अपने राज पर राजेन्द्र चोल का अधिकार हो जाने पर गंगरस होयसल राज्य का अधीनस्थ सामन्त बन गया । इसके दो पुत्रों को चालुक्यराज सोमेश्वर की महारानी मयलल देवी ने अपने पास रक्खा। कालान्तर मे उन दोनों ने गंग राजाओं की सभी उपाधियों को धारण किया। यद्यपि गजेन्द्र चोल के साथ युद्ध में महाराजा गंगरस के पराजित होने और तलकाड के गंग राज्य पर चोलों का अधिकार हो जाने के कारण गंग राजवंश का विशाल और शक्तिशाली राज्य समाप्त हो गया। किन्तु गंग वंशियों ने इसके उपरान्त भी ईसा की पन्द्रहवीं शताब्दी तक अपने आपको सामन्तों, सेनापतियों और शासकों की स्थिति में बनाये रक्खा। गंगवंशी राजाओं, शासकों, सामन्तों, सेनापतियों और राजरानियों की जैन धर्म के प्रति प्रगाढ श्रद्धा रही। पुरले और कुल्लूरगुड्डा के शिलालेखों से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि गंग राजवंश की एक शाखा ने कलिंग में अपनी राजसत्ता स्थापित की। ई०सन् १०७७ १. जैन शिलालेख संग्रह भाग २, लेख संख्या २५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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