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द्रव्य परम्परागों के सहयोगी राजवंश ]
(२५) राचमल्ल-राजमल्ल चतुर्थ-सत्यवाक्य (ईस्वी सन् ६७४ से ६८४) इसका लघु भ्राता रक्कस-अन्नन-बंठ इसके अधीन राज्यपाल था । इसके शासनकाल के लेख संख्या १५४ के अनुसार इसने श्रवण बेलगोल के अनन्तवीर्य को पेगीदूर नामक ग्राम और कतिपय अन्य दान दिये। इसके मन्त्री एवं सेनापति चामडराय ने आमूलचूल एक ही ठोस पाषाणपुज पर्वतराज के उच्चतम अंग को काट छांट करवाकर उच्चकोटि की कलापूर्ण कृति की प्रतीक स्वरूपा गोम्मटेश्वर की विश्व के लिए आश्चर्यभूत ५६।। फीट ऊंची विशाल मूत्ति का श्रवणबेलगोल में निर्माण करवाया । इस अनुपमकला की प्रतीक गोम्मटेश्वर की गगनचुंबी मूर्ति पर न केवल श्रवणबेलगोल अथवा कर्णाटक को ही अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष को गर्व है। गोम्मटेश्वर की मत्ति का निर्माण करवाकर चामु डराय ने स्वयं के साथ-साथ गंग राजवंश का नाम भी अमर कर दिया।
___ इन गंग राज राचमल्ल को श्रवणबेलगोल के लेख संख्या २७७ में जिन धर्म समुद्र के लिये पूर्ण चन्द्र तल्य बताया है । गोम्मटेश्वर की इस विशाल मत्ति की प्रतिष्ठा चामडराय ने श्रवणबेलगोल में जिस समय की उसका उल्लेख बाहुबलि चरित्र में निम्नलिखित रूप से किया गया है :
कल्क्यब्दे षटशताख्ये विनूत विभव संवत्सरे मासि चैत्र, पचम्या शुक्लपक्षे दिनमरिण दिवसे कुम्भलग्ने सुयोगे । साभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटित भगरण सुप्रशस्तां चकार, श्रीमच्चामुडराजो वेल्गुलनगरे गोमटेशप्रतिष्ठाम् ।।
अर्थात् वेलगोल नगर में चामु डराय ने कल्की सम्वत् ६०० के विभव नामक संवत्सर में चैत्र शुक्ला पंचमी रविवार के दिन कुम्भ लग्न, सौभाग्य योग और मृगशिरा नक्षत्र में गोम्मटेश्वर की प्रतिष्ठा की । बाहुबलि चरित में उल्लिखित उपयुद्ध त संवत् एवं तिथि के अनुसार प्रमुख ऐतिहासज्ञा ने सिद्ध किया है कि ईसवी सन् १०२८ में २३ मार्च के दिन चामुडराय ने गोम्मटेश्वर की गगनचुम्बी प्रतिमा की प्रतिष्ठा की।
(२६) गग रक्कस --- राचमल्ल (ईसवी सन् १८४ मे BEE) इसके छोटे भाई अरुमलि देव के चट्टल और कंचन देवी नाम की दो राजकूमारियां थीं। इन दो पुत्रियों के पश्चात् एक पुत्र हुअा। उसके जन्म पर रक्कस गंग ने यह कहते
(क) मैसूर प्राचियोलोजिकल रिपोर्ट ईस्वी सन् १९२३, डा. श्याम शास्त्री का
शोध प्रवन्ध । (ख) म्वामी कन्न पिल्लई का इंडियन एफेमेरिस । (ग) जैन शिलालेख संग्रह भाग १ की भूमिका पृष्ठ ३१ ।
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