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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
की सीमाओं में सम्मिलित किया। इस राजा ने शक सम्वत् ८०६ ईस्वी सन् ८७० में पेन्वे कडंग के सत्यवाक्य जिन चैत्यालय के लिए विलियर के बारह गांव दान में दिये ।' ईस्वी सन् ८७० में भूतरस नामक इसका एक पुत्र युवराज पद पर आसीन था।
(२१) नीति मार्ग-सत्यवाक्य-राछमल्ल-रणविक्रमैया-नन्नियगंग । (ईस्वी सन् ८६३ से ११६) पल्लव नोलम्बाधिराज इस राजा का अधीनस्थ प्रशासक था।
(२२) ईरेयप्पा-राजमल्ल-राचमल्ल । (ईस्वी सन् ६१६ से ईस्वी सन्
६२१)
(२३) सत्यवाक्य-राचमल्ल-नन्निय गंग-जयद उत्तरंग-गंग गांगेय (भीष्म) (ईस्वी सन् ६२१ से ६६३) इसने अपनी पुत्री का विवाह राष्ट्रकूटवंशी राजा कृष्णराज अपरनाम कन्नदेव के साथ किया और उसकी सहायता से इसने अपने राज्य का विस्तार किया। हिस्टोरिकल रिसर्च सोसायटी को मिले धनवाद शिलालेख के अनुसार मेलपाडी में सेना के पडाव के साथ ठहरे हुए मारसिंह द्वितीय ने सूरस्थ गण के आचार्य रविनन्दि के शिष्य एलाचार्य को अपनी माता कलव्बे द्वारा मेलपाडि के समीपस्थ उत्तरी भारकाट जिले के हेमग्राम में निर्मापित जिनमन्दिर की मूत्तियों और देवों तथा मुनियों के चित्रों की पूजा के लिए तथा मुनियों को चार प्रकार का दान देने के लिये कोंगलिदेश के काडलूर ग्राम का दान दिया। यह एलाचार्य ज्वालामालिनी कल्प के अपने समय के विख्यात विशेषज्ञ थे ।
(२४) मारसिंह-गंगकन्दर्प-सत्यवाक्य-नोलम्ब कुलान्तक देव । (ईस्वी सन् ६६३ से ६७४) यह बड़ा शक्तिशाली राजा था। लेख संख्या १४६ और १५२ के अनुसार उन्होंने गंग कन्दर्प जिनालय के निर्माण के साथ-साथ जैनधर्म के सर्वतोमखी अभ्युत्थान के अनेक कार्य किये। इस राजा ने अपने बहनोई राष्ट्रकटवंशी राजा कृष्णराज चोलान्तक की प्रार्थना पर गुर्जर राज्य पर आक्रमण किया । राष्ट्रकूटवंश के राजाओं के महा सामन्त के रूप में इसने अनेक देश जीतकर राष्ट्रकूटों के राज्य का विस्तार किया। यह चालुक्य राजकुमार राजादित्य के लिये कराल काल के समान भयानक था । अपने समय का जैन धर्म का महान् प्रभावक सेनापति चामुडराय इस राजा का और इसके पश्चात् इसके पुत्र का भी सेनापति एवं महामन्त्री था। मारसिंह ने एपिग्राफिका कर्णाटिका भाग १० और मलवागल लेख संख्या ८४ के अनुसार बंकापुर में अजितसेन भट्टारक के समीप संलेखनापूर्वक शक सम्वत् ८६६ (ईस्वी सन् ६७४) में पंडित मरण का वरण किया ।
' जैन शिलालेख संग्रह भाग २, लेख संख्या १३१ पृष्ठ १५४-१५५
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