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द्रव्य परम्परागों के सहयोगी राजवंश ]
[ २६७ मेरेयप्पा और लोकादित्य विभिन्न क्षेत्रों के प्रशासक (राज्यपाल) थे। इसने गज शास्त्र की रचना की।
१७. शिवमार द्वितीय-कौंगरिण महाराजाधिराज परमेश्वर-संगोट (ईस्वी सन् ८०४-८१४) । गंग राजवंश इस वंश की स्थापना के काल से सदा ही अपराजेय रहा किन्तु नवमें राष्ट्रकूट वंशी राजा निरुपम अथवा धारावर्ष ने राजा शिवमार को ईस्वी सन् ८०५ के आस-पास एक युद्ध में पराजित करके बन्दी बना लिया। निरुपम के पुत्र प्रभूतवर्षगोविन्द ने उसे मुक्त कर दिया। किन्तु उसकी राष्ट्रकूट राज्य विरोधी गतिविधियों से क्रद्ध हो ईस्वी सन् ८०७ के आस-पास उसे पुनः बन्दी बना लिया। उस समय से ईस्वी सन् ८१३ तक राष्ट्रकूटों का चाकीराज नामक राज्यपाल गंग मंडल की प्रशासनिक देख-रेख करता रहा। शिवमार किसी न किसी प्रकार से राष्ट्रकूटों के शिकंजे से बच निकलने में सफल हुा । और सैन्य संग्रह कर उसने गोविन्द के सेनापतित्व में गुड गुंटूर के रणक्षेत्र में एकत्रित हुई
राष्ट्रकूटों, चालुक्यों और हैहयों की सम्मिलित सेनाओं को युद्ध में पराजित कर दिया। इस प्रकार ईस्वी सन् ८१४ में गंग मंडल से राष्ट्रकूटों के स्वल्पकालीन शासन को शिवमार द्वितीय ने उखाड़ फेंका ।
___ शिवमार के पुनः राज सिंहासनारोहण के आयोजन में राष्ट्रकूटवंशी राजा गोविन्द एवं पल्लवराज नन्दीवर्मा सम्मिलित हए और उन दोनों ने अपने हाथों से शिवमार के भाल पर राजतिलक किया। पूर्वी चालुक्यों के साथ शिवमार ने बारह वर्ष तक युद्ध किया । युद्धों में उसके शरीर पर शस्त्रों के १०८ घाव लगे।
धर्म धौरेयता के साथ-साथ युद्धं शौंडीरता का सद्भाव वस्तुत: गंग राजवंश की विशेषता रही है। इस विशिष्ट गुण के कारण गंग राजवंश के राजाओं ने "ये कम्मे मूरा ते धम्मे सूरा" इस शाश्वत सूक्ति को चरितार्थ कर बताया। इसने "गज शतक' की रचना की। इस राजा ने "मालव सप्तकी" विजय कर पाषाण पर 'गंग मालव' उट्टकित करवाया। इसने एक युद्ध में करण गगमुज्जे के राजा के छोटे भाई जयकेसि को युद्ध में मारा। (१८) विजयादित्य--रण विक्रम (ईस्वी सन् ८१५ से)
यह शिवमार द्वितीय का भ्राता था। (१६) मारसिंह द्वितीय-ईरेयप्पा-लोकत्रिनेत्र ।
(२०) राछमल्ल (राजमल्ल) प्रथम-सत्यवाक्य-कोंगरिणवर्म-धर्म महाराजाधिराज परमानंदी (ईस्वी सन् ८६६ से ८६३) इसका कोवलाल और नन्दगिरि पर आधिपत्य था । गंग राज्य के जिन क्षेत्रों पर राष्ट्रकूटों ने बहुत समय से अपना अधिकार कर रखा था उन्हें राजमल्ल प्रथम ने राष्ट्रकूटों से छीनकर पुनः गंग राज्य
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