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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ३
के तट तक फैली हुई थी। यहां यह ध्यान देने की बात है कि इस वंश के नवमें राजा मुश्कर का शासनकाल ईस्वी सन् ५१३ से प्रारम्भ होना बताया गया है । उसका राज्य कब तक रहा और उसका पुत्र श्री विक्रम कब सिंहासनासीन हुआ और कब तक वह सिंहासनारूढ़ रहा इसका कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है । इसके पुत्र भूविक्रम का शासनकाल ईस्वी सन् ६७० तक माना गया है। इससे केवल यही अनुमान किया जा सकता है कि ईस्वी सन् ५१३ से ईस्वी सन् ६७० की बीच की १५७ वर्ष की अवधि में गंग वंश के क्रमशः नवमें, दसवें और ग्यारहवें राजाओं का शासन रहा ।
११. भूविक्रम - श्री वल्लभ-भूरि विक्रम ( ईस्वी सन् से ६७० तक ) । यह अपने समय का श्र ेष्ठ योद्धा था । इसने कांची पति पल्लव राज को युद्ध भूमि में पराजित एवं बन्दी बनाकर उसके सम्पूर्ण राज्य पर अधिकार कर लिया था । हस्ति सेना के युद्धों में लगे गजदन्तों के गहरे घावों से इस राजा का विशाल वक्षस्थल चित्रित हो गया था ।
१२. शिवमार ( - प्रथम नवकाम - शिष्टप्रिय - पृथ्वीकौंग रिण - चागी - नवलोक - कम्बय्य । ईस्वी सन् ६७०-७१३ ) इसके सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी श्रद्यावधि उपलब्ध नहीं हुई है ।
१३. एरग-गंग । यह शिवमार प्रथम का भाई था ।
१४. एरे यंग । यह राजा एरग का पुत्र था। इन दोनों पिता पुत्र के शासन Sarah सम्बन्ध में कोई उल्लेख अभी तक कहीं उपलब्ध नहीं हुआ है ।
१५. मारसिंह प्रथम : यह राजा बड़ा ही शरणागत प्रतिपाल था । इसने डिंडिकोज, एरिंग और नाग दंड नामक तीन राजनैतिक शरणार्थियों, जिनमें से एक अमोघवर्ष के राज्य से भाग कर आया था, को अपने यहां शरण दी । शरणागतों की रक्षा के लिए उसे घोर युद्ध करने पड़े । इस प्रकार के वैम्बल गुलि के एक युद्ध में उसे गहरा घाव लगा। घाव के अन्दर की अपनी एक हड्डी को उसने काटकर गंगा में प्रवाहित किया । शरणागत की रक्षा के लिये उसने पांड्यराज वरगुरण के साथ युद्ध करके उसे पराजित किया। इस विजय के पश्चात् अपने शरणागत की रक्षा करते हुए मारसिंह प्रथम ने अपने प्राणों का बलिदान तक कर दिया ।
१६. श्रीपुरुष - पृथ्वीकोंगरणी - केसरी - -मुत्तरस ( ईस्वी सन् ७२७ से ८०४ ) । इसने मान्यपुर में निवास करते हुए शासन किया। इसकी महाराणी का नाम श्रीजा था । इस राजा ने बारण राजवंश को संरक्षण प्रदान कर इस राजवंश की सहायता की । जिस वाण राजा की उसने सहायता की वह चोलराज वर्गुण का समकालीन राजा था । इसके शासनकाल में इसके पुत्र शिवमार, दुग्गमार, एरेयप्पा प्रथवा
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