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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
. (२) माधव द्वितीय-किरिया माधव : यह राजा उच्च कोटि का विद्वान् एवं विद्वानों तथा कवियों के गुणावगुणों की परख में कसौटी के समान बड़ा ही पारखी था, निपुण था । इसने 'दत्तक सूत्र' पर वृत्ति की रचना की।'
इसके राज-सिंहासनासीन होने के पूर्व ही गंग राज्य कंटकविहीन और एक सुदृढ़ राज्य बन चुका था। अत: इस राजा का शासनकाल शान्ति एवं सर्वतोमुखी समृद्धि का काल माना गया है ।
(३) हरि वर्मा (ईस्वी सन २४७-२६६) इस राजा की हस्ति सेना बड़ी ही शक्तिशालिनी थी। इसने अपनी हस्ति सेना के बल पर अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की। यह अपने समय का अप्रतिम धनुर्धर था। अपने धनुष की प्रत्यंचा के प्रताप से अर्जित विपुल सम्पदा से इसने अपने राज्यकोष के बल में उल्लेखनीय अभतपूर्व अभिवद्धि की । ये सभी राजा जैन धर्म के प्रगाढ़ निष्ठावान् अनुयायी रहे। इनके राज्य में प्रजा सभी भांति सम्पन्न और सूखी थी।
(४) विष्ण गोप। इस राजा ने जैन धर्म का त्याग कर वैष्णव धर्म स्वीकार किया और उसके परिणामस्वरूप परम्परा से इस वंश के अधिकार में चले पा रहे पांचों दिव्य आभूषण विलुप्त हो गये । २
(५) पृथ्वीगंग। इस राजा ने पुन: जैन धर्म स्वीकार किया और केवल एक पीढ़ी के व्यवधान से यह राजवंश पुनः जैन धर्मावलम्बी बन गया।
(६) माधव तृतीय । तड़गाल माघव (ईस्वी सन् ३५७ से ३७०)। इस राजा का विवाह कदम्बवंशी राजा कृष्ण वर्मा की बहिन से हुआ। इसने अपने दादा के समय से बन्द हुए जन कल्याणकारी एवं धार्मिक अनुदानों को राज्यकोष से पुन: प्रारम्भ किया। इससे लेख संख्या २७७ में उल्लिखित राजा विष्णुगोप के अजैन बन जाने के उल्लेख की पुष्टि होती है। सम्भवतः विष्णगोप ने जैन धर्म के परित्याग और अन्य धर्म के अंगीकार के साथ-साथ जैन धार्मिक संस्थानों को राज्य की ओर से दी जाने वाली सहायता सुविधाओं आदि को बन्द कर दिया होगा, जिन्हें कि राजा तडंगाल माधव ने पुनः प्रारम्भ किया। यह राजा निष्ठा सम्पन्न जैन धर्मावलम्बी था। इस राजा को-कलियुग के कीचड़ में फंसे हुए धर्म रूपी वृषभ का उद्धार करने में सदा तत्पर रहने वाला बताया गया है ।
. जैन शिलालेख संग्रह भाग २ लेख संख्या ६४ पृष्ठ ६०-६२ २ जैन शिलालेख मंग्रह भाग २ लेख मंख्या २७७, पृष्ठ संख्या ८१४, ४२८ . जैन शिलालेख संग्रह भाग २ लेख संख्या ६४
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