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द्रव्य परम्परामों के सहयोगी राजवंश ]
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७. यदि तुम लोग या तुम्हारे वंशज अभावग्रस्त अभ्यर्थियों की आवश्यकतापूर्ति के लिये अर्थ प्रदान नहीं करोगे, तो इन दशाओं में से किसी भी एक दशा में तुम्हारा राजवंश नष्ट हो जायगा। अन्यथा तुम्हारा राजवंश और तुम्हारा राज्य दोनों प्रक्षण्ण रहेंगे।
इन सात शिक्षाओं को गंग वंश के राजाओं ने गुरुमंत्र के समान गांठ बांधकर अपने अन्तर्मन से ग्रहण किया । गंग राजवंश के प्रारम्भ से लेकर अन्त तक के राजाओं के जीवन वृत्तों के इस सन्दर्भ में सूक्ष्म रीति से पर्यवेक्षण करने पर स्पष्ट प्रतीत होता है कि प्राचार्य माघनन्दि की इन सात शिक्षाओं को शिरोधार्य करने के साथ-साथ उन्हें अपने जीवन में पूरी तरह से उतारने के परिणामस्वरूप ही इस वंश के प्रायः सभी राजा दृढ प्रतिज्ञ, अन्तर्मन से जैन धर्मावलम्बी, पर स्त्री विमुख प्रवृत्ति वाले, निरामिष भोजी, सन्त चरण रत, उदार, दानी एवं अप्रतिम योद्धा हुए हैं। शिलालेखों के उल्लेख इस बात के साक्षी हैं कि जिस प्रकार नववधु विविध प्रकार के आभूषणों से अलंकृत रहती है उसी प्रकार समर भूमि में अग्रिम पंक्ति में जूझते रहने के कारण कोंगरिणवर्मा, दुविनीत, भूविक्रम, मारसिंह द्वितीय, शिवमार (चौदहवां राजा) प्रभृति गंगवंशी राजाओं के अंगोपांगों के अग्रिम भाग शस्त्रों के घावों से अलंकृत थे। मारसिंह द्वितीय ने तो अपने शरणागत की रक्षा के लिये पांड्यराज वरंगुण से घोर संग्राम किया और युद्ध में विजयी होने के पश्चात् अपने शरणागत के प्राणों की रक्षा के लिये अपने प्राणों तक को अर्पित कर दिया ।
प्राचार्य सिंहनन्दि की शिक्षाओं को शिरोधार्य कर गंग राजवंश के राजाओं ने जिस प्रकार शौर्य का उत्कष्ट प्रदर्शन किया उसी प्रकार प्राचार्य सिंहनन्दि की आध्यात्मिक शिक्षायों के पालन में भी वे सदा अग्रणी रहे। महाराजा नीतिमार्ग (८६३ से ११६) ने अन्त समय में संलेखना संथारा करके पंडित मरण का वरण किया। मारसिंह तृतीय (६६१ से ६७४) ने वांकापुर में अजित भट्टारक के पास तीन दिन का संथारा संलेखना कर अरिहन्त सिद्ध साधु का स्मरण करते हुए अनशनपूर्वक पंडित मरण किया। गंग राजवंश के राजाओं द्वारा निर्मित करवाये गये मन्दिरों, वसतियों एवं दानशालाओं के उल्लेखों से पुरातात्विक अभिलेख भरे पड़े हैं।
इन सब तथ्यों से यह विदित होता है कि प्राचार्य सिंहनन्दि ने गंग वंश की स्थापना के समय गंग राजवंश को जो सात शिक्षाएं दी थीं उन शिक्षाओं का विष्णुगोप को छोड़कर बाकी के प्रायः सभी राजाओं ने पालन किया।
यहां यह विचारणीय है कि प्राचार्य सिंहनन्दि ने इस राजवंश की स्थापना के समय दडिग और माधव को जो सात शिक्षाएं दीं उनमें सातवीं शिक्षा है :
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