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________________ २६० ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ की मोर प्रस्थित कर दिया। उन दोनों राजकुमारों के नाम बदलकर क्रमश: द डि ग और मा ध व रख दिये गये। अनुक्रम से अनेक स्थानों पर पडाव डालते हुए वे कर्णाटक प्रदेश में एक ऐसे स्थान पर पहुंचे, जहां एक पहाड़ी के पास विशाल पेरू र (सरोवर) के किनारे.पर एक चैत्यालय बना हुआ था और उस सरोवर के चारों ओर चन्दन, मन्दार एवं नमेरु आदि वृक्षों से भरापूरा एक सुन्दर वन भी था । प्राकृतिक सौन्दर्य से भरे पूरे उस स्थान पर उन्होंने अपना डेरा डाला। चैत्यालय की तीन बार प्रदक्षिणा कर उन्होंने सर्वप्रथम जिनेन्द्र भगवान् की स्तुति की। वहीं पास में निवास कर रहे का णू र गण के (ग्रामनीय संघ के) आचार्य सिंहनन्दि के दर्शन कर उन्हें विनयपूर्वक वन्दन नमन किया। प्राचार्य सिंहनन्दि द डि ग और मा घव की श्रद्धा और विनय भक्ति से बड़े प्रसन्न हुए और उनका वास्तविक परिचय प्राप्त होने पर उन्हें अनेक विद्यानों का प्रशिक्षण देकर इन विद्याओं में पारंगत बनाया। एक दिन प्राचार्य सिंहनन्दि के देखते-देखते ही माधव ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर एक पाषाण स्तम्भ पर तलवार का भरपूर वार किया। पाषाणस्तम्भ तत्काल दो टुकड़े होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा । माधव के इस अतुल बल को देखकर सिंहनन्दि परम प्रसन्न हुए। प्राचार्य सिंहनन्दि की सहायता से दडिग और माधव ने एक राज्य की स्थापना की। उन्होंने कुवलाल (कोल्हार) को अपनी राजधानी बनाया और कुवलाल ६६००० राज्य के अधिपति हुए। जिस स्थान पर उन्हें प्राचार्य सिंहनन्दि के दर्शन हुए थे वह स्थान लोक में गंग पेरूर के नाम से विख्यात हुआ । नन्दिगिरि पर उन्होंने एक सुदृढ़ किले का निर्माण करवाया। इस शिलालेख (सं २७७) के उल्लेखानुसार गंग राजवंश की स्थापना करते समय प्राचार्य सिंहनन्दि ने इस गंग राजवंश के मूल पुरुष दडिग और माधव को पीढी प्रपीढ़ियों तक जैन धर्म के सिद्धान्तों के प्रतिपालन करते रहने की प्रतिज्ञाकराते हुए निम्नलिखित सात बातों से उन्हें और उनके वंशजों को सावधान किया था : १. जो प्रतिज्ञाएं तुमने की हैं, उनका जिस दिन तुम पालन करना छोड़ ... दोगे, २. जैन धर्म की शिक्षाओं को यदि अपने जीवन में नहीं ढालोगे, ३. यदि तुम स्त्री को छीनोगे, उसका उपभोग करोगे, ४. यदि तुम लोग मद्य एवं मांस का सेवन करोगे, ५. यदि तुम नीच लोगों से सम्बन्ध स्थापित करोगे, ६. यदि तुम लोग अथवा तुम्हारे वंशज रणांगण में पीठ दिखाकर रणां गरण से पलायन करोगे, Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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