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द्रव्य परम्परामों के सहयोगी राजवंश ]
[ २५६ १. हरिश्चन्द्र इक्ष्वाकु वंशी अयोध्या का राजा भगवान् ऋषभदेव के शासनकाल में हुआ । उसका पुत्र
२. भरत । भरत की रानी विजया महादेवी को लोल लहरों, मत्स्यों, चक्रवातों और राजहंसों से संकुल गंगा में स्नान करने का दोहद उत्पन्न हुआ। दोहद की पूर्ति के पश्चात् विजय महादेवी ने एक तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया, जिसका नाम गंगदत्त रक्खा गया।
३. गंगदत्त से गंग राजवंश का प्रवर्तन हुमा। गंगदत्त के अनन्तर अनुक्रम से अनेक राजाओं के पश्चात् नेमिनाथ के तीर्थ में इसी वंश का विष्णुगुप्त नामक राजा हुआ।
४. विष्णुगुप्त अनेक वर्षों तक अहिच्छत्रपुर में राज्य करता रहा । उसने अपने बड़े पुत्र भगदत्त को कलिंग का राज्य और छोटे पुत्र श्रीदत्त को अहिच्छत्रपुर का राज्य दिया। इस प्रकार गंगवंश की दो शाखाएं हो गई। एक अहिच्छत्रपुर में और दूसरी कलिंग में शासन करने लगीं। भगदत्त और उनके वंशज कलिग गंग के नाम से लोक में विख्यात हुए।'
५. श्रीवत्त । श्रीदत्त का पुत्र प्रियबन्धु ।
६. प्रियबन्धु जिस समय अहिच्छत्रपुर में राज्य कर रहा था। उस समय भगवान् पार्श्वनाथ को केवलज्ञान हुआ। इन्द्र जिस समय भगवान् पार्श्वनाथ के केवलज्ञानोत्पत्ति की महिमा गान के लिये उपस्थित हुआ, उसी समय राजा प्रियबन्धु भी वहां उपस्थित हुआ और उसने बड़ी श्रद्धा भक्ति से पार्श्व प्रभू के केवलज्ञान की महिमा गाई। प्रियबन्धु द्वारा की गई केवलज्ञान महिमा से प्रसन्न होकर इन्द्र ने उसे पांच दिव्य प्राभरणालंकार प्रदान किये और उसने अहिच्छत्रपुर का नाम विजयपुर रख दिया।
इस वंश के अनेक राजाओं के पश्चात् कालान्तर में ७. कम्ब नामक राजा हुअा । कम्ब के बाद पद्मनाभ हुआ।
८. पप्रनाभ के राम और लक्ष्मण नाम के दो पुत्र हुए। जब ये दोनों कुमार किशोर वय में प्रविष्ट हुए उस समय उज्जयिनी के राजा महीपाल ने विजयपुर पर आक्रमण कर पद्मनाभ से वे पांचों दिव्य आभरण मांगे। पद्मनाभ इससे सहमत नहीं हुआ। उसने चालीस चुने हुए ब्राह्मणों के साथ अपने राम लक्ष्मण नाम के दोनों राजकुमारों और उनकी छोटी बहिन को प्रच्छन्न रूप से विजयपुर से दक्षिण . उत्तरवर्ती काल में गंग राजवंश की शाखा ने कलिंग में शताब्दियों तक शासन किया।
इस ऐतिहासिक तथ्य के सन्दर्भ में यह उल्लेख विचारणीय है । -सम्पादक।
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