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________________ २५८ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ है कि इस राजवंश के शासकों ने अनेक जिन मन्दिरों, जिन मूर्तियों एवं जैन साधुओं के निवास के लिए अनेकों गुफाओं आदि का निर्माण करवाकर जैनाचार्यों को उनका दान कर दिया। गंग राजवंश का उद्भव नगर से प्राप्त ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शिलालेख संख्या ३५ ईस्वी सन् १०७७ में गंग राजवंश के इतिहास पर विशद् प्रकाश डाला गया है। सोरब से प्राप्त ईस्वी सन् १०८५ के त ति के रे शिलालेख (सो र ब १० जिल्द ७) पु र ले से प्राप्त ईस्वी सन् १११२ (सो र ब ६४) के तथा कन्नूर गुड् डा से प्राप्त ईस्वी सन् ११२२ के (सो र ब ४) शिलालेखों में भी नगर से प्राप्त उपरोक्त लेख संख्या ३५ ईस्वी सन् १०७७ के शिलालेख में उकित तथ्यों के समान ही गंग वंश का इतिहास प्राप्त होता है । इन सब अभिलेखों में नगर का लेख संख्या ३५ सबसे पहले का है। नगर के शिलालेख में गंग राजवंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो विवरण दिया गया है, उसके साथ-साथ प्रख्यात पुरातत्वविद् एवं इतिहासज्ञ बी लूइस राइस और अन्य विद्वानों द्वारा लिखे गये विवरणों के आधार पर गंग राजवंश के उद्भव, उसके शासनकाल एवं इस वंश के राजाओं द्वारा किये गये ऐतिहासिक महत्व के कार्यों का विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है : ठुम्मच से प्राप्त शक संवत् ६६६ (ईस्वी सन् १०७७) के लेख संख्या २१३, नि दि मि से प्राप्त ईस्वी सन् १९१७ के लेख संख्या २६७, कल्लू र गुडु से प्राप्त ईस्वी सन् ११२१ के लेख संख्या २७७ और पु र ले (बिदरे परगना) से प्राप्त लेख संख्या २६६ में गंगवंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विस्तार से विवरण प्रस्तुत किया गया है। लेख संख्या २१३ में गंग राजवंश का सूर्यवंशी इक्ष्वाकु क्षत्रियों से सम्बन्ध बताते हुए राजाओं का क्रम इस प्रकार दिया है : .. गंग राजवंश के पूर्व पुरुष १. धनंजय : इक्ष्वाकु कुल गगन भानु अयोध्यापति धनंजय ने कान्यकुब्जाधीश (नाम नहीं दिया है) को युद्ध में पाहत कर बन्दी बनाया। उनकी महारानी गान्धारी देवी से हरिश्चन्द्र का जन्म हुआ। हरिश्चन्द्र की रानी रोहिणी देवी से राम और लक्ष्मण नामक दो पुत्रों का जन्म हुआ। ये राम और लक्ष्मण आगे चलकर क्रमशः द डि ग और मा ध व के नाम से विख्यात हुए। ये दोनों भाई ही गंग वंश के पूर्व पुरुष हैं। लेख संख्या २७७ में गंग वंश के उद्भव के सम्बन्ध में निम्नलिखित रूप से विवरण दिया गया है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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