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। जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ , मदुरै में ज्ञान सम्बन्धर' से प्रतिस्पर्धा में जैन श्रमणों के पराजित हो जाने पर सुन्दर पाण्ड्य जैनधर्म का परित्याग कर शैव बन गया और उसने स्पर्धा की शर्त के अनुसार पराजित ५००० जैन श्रमरणों को फांसी के फंदों पर लटका दिया।
इस दुर्भाग्यशालिनी घटना को इतिहास के अनेक विद्वानों ने केवल काल्पनिक न मानकर इसे एक ऐतिहासिक तथ्य की परिधि में आने वाली घटना माना है । मदुरै के मीनाक्षी मन्दिर की भित्तियों पर भित्तिचित्रों में श्रमण संहार की इस घटना को चित्रित किया गया है।
पाण्ड्य राजवंश द्वारा जैन धर्म के स्थान पर शवधर्म स्वीकार कर लिये जाने के पश्चात् चोलराजवंश ने भी शैव धर्म अंगीकार कर जैन धर्मानुयायियों पर अत्याचार करना प्रारम्भ कर दिया। उसके पश्चात् बसवा, एकांतद रमैया एवं रामानुजाचार्य द्वारा दक्षिणापथ में क्रमश: शैव एवं वैष्णव (रामानुज) सम्प्रदाय के प्रचार के एवं शैवों द्वारा जैनों पर किये गये सामूहिक लट-खसोट हत्या एवं बलात् धर्म परिवर्तन के परिणामस्वरूप जो प्रान्ध्र प्रदेश शताब्दियों से जैनों का मुख्य गढ़ था, वहां से जैनों का अस्तित्व तक मिट गया। तमिलनाड में भी शताब्दियों से बहुसंख्यक के रूप में माने जाते रहे जैन धर्मावलम्बी अतीव स्वल्प अथवा नगण्य संख्या में ही अवशिष्ट रह गये।
__इस प्रकार के संक्रांतिकाल में जैन धर्म की रक्षा करने में, जैन धर्म को एक सम्मानास्पद धर्म के रूप में बनाये रखने में जिन राजवंशों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया, उनमें से प्रमुख राजवंशों का, एवं उनके द्वारा जैनधर्म के अभ्युदयउत्कर्ष के लिये किये गये कार्यों का संक्षेप में यहां परिचय प्रस्तुत किया जा
Both he (K. V. Subrahmanya Aiyer) and Mr. Ramaswami Ayyangar would therefore place Tirugnansambandhar in the Seventh Century A. D.. -MEDIAEVAL JAINISM (Critical times) p. २.५ Here on the walls of the same temple are found paintings depicting the persecution and impaling of the Jainas at the instance of Tirujnana sambandhar. And what is still more unfortunate is that even now the whole tragedy is gone through at five of the twelve annual festivals at that famous Madura temple ? -MEDIAEVAL JAINISM (Critical times) p.
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