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________________ द्रव्य परम्परागों के सहयोगी राजवंश ] [ २५५ ... "ज्ञान सम्बन्ध मूर्ति ने पालकी में बैठे-बैठे ही बन्द कपाटों वाले शिवमन्दिर को देख कर अनेक स्तोत्रों से शिव की स्तुति की। तत्काल शिव मन्दिर के कपाट खुल गये । इस प्रकार उन्होंने अनेक बन्द पड़े शिव मन्दिरों के कपाटों को खोला। वे वैगै नदी के दक्षिणी कल पर अवस्थित शैव मठ में ठहरे । ........... ......."श्र तिपुर के निवासियों ने ज्ञान सम्बन्ध मूर्ति से प्रार्थना की-“हे धर्मोद्वारक! ......."श्रमणों के द्वारा किये जा रहे अत्याचारों से हम लोग बड़े दुःखी एवं पतित अवस्था में हैं । इस भूमि के शासक राजा भी श्रमणों के पक्ष में हैं और बहुसंख्यक प्रजा भी श्रमणों की अनुयायी है । इस प्रकार की परिस्थितियों में शैव धर्म कैसे पनपेगा ?............ इस स्कंध नदी के दक्षिणी कूल पर इन श्रमणों का मन्दिर एवं मठ है । वे नगर बसा कर वास करते हैं। वे श्रमरण कहते हैं "शवों को प्रांखों से देखना और उनकी बात सुनना भी महापाप है ।"..........." ........."ज्ञान सम्बन्ध मूर्ति की मोतियों से जटित पालकी, वृषभध्वज, श्वेत चामर एवं तेवारं का सघोष गान करते हुए शैव समूह के साथ ज्ञान सम्बन्ध मूर्ति को देखते ही श्रमणों के तन-मन भय से प्रकम्पित हो उठे। वे श्रमण विचार फरने लगे-"इस ज्ञान सम्बन्ध मूर्ति ने मदुरै में ८००० श्रमणों को मौत के घाट उतार दिया। अब हमें क्या करना चाहिये ?" ....."तब सभी श्रमण मिलकर विचार करने लगे-"अब हम लोगों के विनाश का समय आ गया है, अब हम में से एक भी जीवित नहीं बचेगा ।...।" ..........."यह देख कर ज्ञान सम्बन्ध मूर्ति ने राजा से कहा-"इन श्रमणों में से जो-जो अपने ललाट में भस्म लगाकर शैव बन जायं, उनको तो जीवन दान दे दिया जाय । जो भाल में भस्म लगाकर शैव न बनें उन श्रमणों को फांसी पर लटका दिया जाय ।"..... ....... ...........इस पर श्रमण धर्म में प्रास्था रखने वाले बहुसंख्यक श्रमण स्वयं फांसी पर चढ़ गये । कुछ लोग शैव बन गये तो कुछ लोग प्राण बचाकर वहां से तत्काल पलायन कर गये ।"" उपयुदत उल्लेखों से यह स्पष्टतः सिद्ध होता है कि सुन्दर पाण्ड्य के शासनकाल में समस्त दक्षिणापथ में पौर विशेषतः तामिलनाड़ में जैन धर्मावलम्बियों की गणना प्रबल बहुसंख्यक के रूप में की जाती थी। __.. मोरियन्टल मोल्ड मेनुस्क्रिप्ट्स लायो री, मेकेन्जे कलेक्शन (महास यूनिवर्सिटी परिकर) की ताड़पत्रीय “जैन संहार चरितम्" प्रति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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