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________________ यापनीय परम्परा ] [ २४७ राचमल्ल के महासेनापति एवं महामन्त्री थे। गंगराजवंश की स्थापना के पश्चात् प्राचार्य सिंहनन्दि एक सैनिक अभियान में भी दडिग और माधव के साथ रहे। यही नहीं, इस राजवंश की स्थापना के समय उन्होंने दडिग और माधव को तथा उनकी भावी पीढ़ियों के राजाओं को जिन सात प्रतिज्ञाओं का पालन करते रहने के लिए निर्देश दिये उन सात प्रतिज्ञाओं में से छठी प्रतिज्ञा यह थी कि रणांगण से कभी पलायन नहीं किया जायगा । आचार्य सिंहनन्दि ने स्पष्ट शब्दों में गंगराजवंश के आदि राजा दडिग् और माधव को यह कहा था कि जिस दिन तुम अथवा तुम्हारे राजवंश का कोई भी राजा युद्ध में पीठ दिखाकर रणांगण से पलायन कर जायगा उसी दिन तुम्हारा राजवंश पराभव को प्राप्त हो जायगा। प्राचार्य सिंहनन्दि के इस उपदेश का गंगवंशी प्राय: सभी राजांत्रों ने अक्षरश: पालन किया। इस बात की साक्षी अनेक शिलालेख देते हैं। प्राचीन शिलालेखों में गंगवंश के अनेक राजारों की प्रशंसा में इस प्रकार के उल्लेख आज भी उपलब्ध होते हैं कि इस वंश के अमक-अमुक राजा के सम्पूर्ण अंग-प्रत्यंग रणांगण में लगे शस्त्रों के प्रहारों के चिह्नों से मण्डित थे। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है जैन साधु के लिये इस प्रकार का उपदेश देना नितान्त निषिद्ध है किन्तु तत्कालीन देश काल और समाज की परिस्थितियों को देखते हुए आचार्य सिंहनन्दि ने इस प्रकार का उपदेश देना धर्म की रक्षा के लिये आवश्यक समझा । यह प्राचार्य सिंहनन्दि यापनीय प्राचार्य थे । लेख संख्या २७७ में क्राणुरगण के इन प्राचार्य सिंहनन्दि को एक पट्ट परम्परा दी हुई है जो इस प्रकार है :-- १. प्राचार्य सिंहनन्दि (गंगराज वंश के संस्थापक) २. अर्हद्बल्याचार्य ३. बेट्टददामनन्दि भट्टारक ४. मेघचन्द्र विद्यदेव ५. गुणचन्द्र पण्डितदेव ६. शब्द ब्रह्म विद्य देव (इस शब्द से अनुमान लगाया जाता है कि इन्होंने सांख्यों, वैष्णवों आदि को प्रभावित कर जैनधर्म के प्रति उनमें मैत्री और सद्भावना उत्पन्न की।) ७. प्रभाचन्द्र सिद्धान्त देव (ये महान तार्किक एवं वादी थे । ये मूल संघ कौंडकुन्दान्वय, कागग्रगण तथा मेप पापागागच्छ के प्राचार्य थे। इनके शिष्य माघनन्दि मिद्धान्त देव हए ।) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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