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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास- भाग ३
१. अभिलेख संख्या ३१३ में मूल संघ कौंडकुडान्वय, क्राणूरगण के तित्रिणीक गच्छ के आचार्य रामनन्दि, पदमनन्दि, मुनिचन्द्र सिद्धान्तदेव, आचार्य भानुकीर्ति सिद्धान्तदेव के नाम शिष्य परम्परा से देने के पश्चात् कनक जिनालय के लिये राजा एक्कल द्वारा आचार्य भानुकीति को भूमिदान देने का उल्लेख किया गया है।
२. अभिलेख संख्या ३५३ में मूल संघ, क्राणूरगण, मेषपाषाण गच्छ के आचार्य बालचन्द्र देव को हेगड़ि जक्कय्य तथा उसकी पत्नि जक्कव्वे द्वारा दिडगुरु में एक चैत्यालय के बनवाने, उसमें सुपार्श्व प्रभू की मूत्ति की स्थापना करने, देव की पूजा करने तथा मुनियों के आहार की व्यवस्था करने के लिये भूमिदान किये जाने का उल्लेख है।
३. अभिलेख संख्या ३७७ में वनवासी मण्डल के कदम्ब वंशी राजा सोरिदेव के शौर्य वर्णन के साथ मूलसंघ कुण्ड कुण्डान्वय, क्राणूरगण, तीन्त्रिणिक गच्छ के मुनि चन्द्रदेव यमी के शिष्य प्राचार्य भानुकीति को तेवरतप्प लोकगावुण्ड द्वारा भूमिदान दिये जाने का उल्लेख है। इस लेख में भानुकीर्ति मुनि को वन्दनिका पुर का अधिपति बताया गया है।
४. अभिलेख संख्या ३८६ में एलम्बल्ली देकिसेट्रि द्वारा शान्ति नाथ बसदि के जीर्णोद्धार, जीयस तथा श्रमणों की चारों जातियों के आहार का प्रबन्ध करने के लिये शान्तिनाथघटिकास्थानमण्डलाचार्य भानुकोत्ति सिद्धान्तदेव को दान देने का और भानुकीति द्वारा अपने मन्त्रवादी शिष्य मकरध्वज को वह दान समर्पित कर देने का उल्लेख है।
ये प्राचार्य भानुकीर्ति उपरि लिखित अभिलेख संख्या ३७७ में वणित प्राचार्य चन्द्र देव के ही शिष्य थे।
५. अभिलेख संख्या ४३१ में मूल संघ, क्राणूर गण, तीन्त्रिणिक गच्छ के प्राचार्य सकलचन्द्र भट्टारकदेव को महाप्रधान महादेव दण्डनायक द्वारा एरग्ग जिनालय बनवाकर, उसमें शान्तिनाथ की प्रतिष्ठा करके, महामण्डलेश्वर एक्कलरस की उपस्थिति में हिडगण तालाब के नीचे 'भेरुण्ड' दण्डे से नाप कर तीन मत्तल चांवल की भूमि, दो कोल्ह और एक दुकान का दान किये जाने का उल्लेख है । इस शिलालेख में यापनीय सघ के तिन्त्रीणिक गच्छ के आचार्यों की परम्परा भी उटैंकित है, जो निम्न प्रकार से है :
(१) आचार्य पद्मनन्दि (२) आचार्य रामनन्दि (३) मुनिचन्द्र सिद्धान्तचक्रेश (४) आचार्य कुलभूषण त्रैविद्य विद्याधर
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