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________________ यापनीय परम्परा ] [ २४३ नीय संघ, उसके गण आदि के सम्बन्ध में जो शिलालेखीय उल्लेख हैं वे इस प्रकार हैं : १. लेख संख्या १८ में श्री विजय शिव मृगेश वर्मा ने अर्हत शाला परम पुष्कल स्थान निवासी साधुओं के लिये और जिनेन्द्र देवों के लिये तथा श्वेताम्बर एवं निर्ग्रन्थ महा श्रमण संघों के लिये कालबंग नामक ग्राम का दान किया। २. लेख संख्या ६६ के अनुसार कदम्ब वंशी राजा रवि वर्मा ने यापनीय, निर्ग्रन्थ और कूर्चक संघों को पलाशिका में भूमिदान दिया। ३. लेख संख्या १०० के अनुसार यापनीय तपस्वियों की चातुर्मासावधि में भोजन व्यवस्था के लिये पलाशिका नगरी में कदम्ब वंशी राजा रवि वर्मा द्वारा दान दिया गया। ४. लेख संख्या १०५ के अनुसार यापनीय संघों के लिये कदम्ब वंशी युवराज देववर्मा द्वारा भूमिदान दिया गया । इसमें 'यापनीय संघेभ्य' इस बहु वचन के प्रयोग से अनुमान किया जाता है कि यापनीय संघ में कई विभिन्न संघ थे। ५. लेख संख्या १४३ में धर्मपुरी के दक्षिण में स्थित एक जिन मन्दिर के लिये दान दिये जाने का उल्लेख है, जो मन्दिर यापनीय संघ के एक मुनि के अधिकार में था। इस शिलालेख में योपनीय संघ के कोटिमड़व गण के नन्दि गच्छ के प्राचार्य जिननन्दि, उनके शिष्य आचार्य दिवाकर और उनके शिष्य प्राचार्य श्रीमन्दिर देव का उल्लेख किया गया है। इस लेख में दिवाकर नन्दि की “यत्केवलज्ञान निधिमहात्मा स्वयं जिनानां सदृशो गुणौघैः" इस श्लोकाद्ध से अतिशयोक्तिपूर्ण स्तुति की गई है। इससे यह प्रतीत होता है कि यह यापनीय प्राचार्य अपने समय के कोई महान् प्रभावक प्राचार्य होंगे। ६. लेख संख्या १६० में यापनीय संघ के कंडुरगण के प्राचार्य मौनिदेव को स्तुति की गई है। इनकी स्तुति से पहले कंडूरगण के आचार्य बाहबलि, देवचन्द्र, बाहुबलि देवसिंह, रविचन्द्र स्वामी और शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव का तथा मानिदेव के पश्चात् प्रभाचन्द्र देव और वाहुबलि भट्टारक का नामोल्लेख किया गया है। . ७. लेख संख्या १८५ में सूरस्थगण के प्राचार्य वज्रपाणि पंडितदेव और साध्वी प्रमुखा जाकीयब्बे का उल्लेख किया गया है । यह पहले बताया जा चुका है कि सूरस्थगण यापनीय संघ का ही एक गण था। जैन शिलालेख संग्रह भाग ३ में यापनीय संघ के सम्बन्ध में जो शिलालेख हैं उनका विवरण संक्षेप में इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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