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________________ २४२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास---भाग ३ इन सब के अतिरिक्त यापनीय परम्परा के विभिन्न गणों के आचार्यों की पट्टावलियों और अनेक लेखों में यापनीय परम्परा के प्राचार्यों को दिये गये भूमि दान, ग्रामदान, एवं उनकी भोजनादि की व्यवस्था के लिये किये गये क्षेत्रादि के दान से सम्बन्धित शिलालेख भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं । कम्बद हल्लि से प्राप्त शक सम्वत् १०४० के एक स्तम्भ लेख में यापनीय परम्परा के प्राचीन सूरस्थ गण के प्राचार्यों की एक छोटी-सी पट्टावलि उल्लिखित है, जो इस प्रकार है : (१) आचार्य अनन्तवीर्य (२) बालचन्द्र (३) आचार्य प्रभाचन्द्र (४) आचार्य क्ल्निले देव (५) आचार्य अष्टोपवासी (६) आचार्य हेमनन्दि (७) प्राचार्य विनयनन्दि (८) आचार्य एकवीर (6) प्राचार्य पल्ल पण्डित अपर नाम अभिमानदानी । इस पल्ल पण्डित को शाकटायन, व्याकरण (शब्दानुशासन) एवं उसकी अमोधवृत्ति के रचनाकार यापनीय आचार्य पाल्यकोत्ति अपर नाम शाकटायन की उपमा दी गई है। जिन शिलालेखों में यापनीय संघ के प्राचार्यों को अथवा यापनीय संघ को तथा यापनीय संघ के साधुओं के भोजन आदि की व्यवस्था के लिये राजाओं अथवा अन्य गहस्थ भक्तों द्वारा भूमि, ग्राम, द्रव्यादि दान दिये गये हैं, उन सब का अति संक्षेप में यहां विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है । जैन शिक्षा लेख संग्रह भाग १ में यापनीय संघ के सम्बन्ध में जो शिलालेखीय उल्लेख है वह इस प्रकार है : १. लेख संस्या ५०० में सूर्य वंशी चोल कूल के महामण्डलेश्वर राजेन्द्र पृथ्वी कौंगाल्व ने मूल संघ कारगर गरण तगरीगल गच्छ के गण्ड विमुक्तदेव के लिये एक वसति का निर्माण करवाया और देव पूजन के लिये भूमि का दान करवाया। २. लेख संख्या ४८६ शक सम्वत् १०४१ में गंग राजवंश के संस्थापक आचार्य सिंहनन्दि का उल्लेख किया गया है । जैन शिलालेख संग्रह भाग २ में याप १. लेख संख्या २६६, जैन शिला लेख संग्रह भाग २ पृष्ठ ३६६ से ४०३ प्रकाशन विक्रम सम्वत् २००६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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