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गापनीय परम्परा ]
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न किसी मूर्ति की प्रतिष्ठा की, न एक भो मन्दिर का निर्माण करवाया और न केतुभद्र यक्ष की विशालकाय काष्ठमूर्ति के अतिरिक्त किसी मूर्ति अथवा मन्दिर के किसी उत्सव का ही आयोजन किया।
___ इस प्रकार इस शिलालेख में उल्लिखित तथ्य सत्यान्वेषी सभी धर्माचार्यों, इतिहासविदों, शोधाथियों, गवेषकों और प्रबुद्ध तत्वजिज्ञासुओं को उन नियुक्तियों, चूणियों, महाभाष्यों, पट्टावलियों एवं अन्याय ग्रन्थों के उन सभी उल्लेखों पर क्षीर-नीर-विवेकपूर्ण निष्पक्ष दृष्टि से गहन विचार करने की प्रेरणा देते हैं, जिनमें मौर्य सम्राट परमार्हत सम्प्रति के लिये कहा गया है कि उसने तीनों खण्डों की पृथ्वी को जिनमन्दिरों से मण्डित कर दिया था।
___ यह तो एक ऐतिहासिक तथ्य है कि खारवेल का हाथी गुफा वाला उपरिवरिणत शिलालेख नियुक्तियों, चूणियों भाष्यों एवं पट्टावलियों से अनेक शताब्दियों पूर्व का है । ये नियुक्तियां आदि वस्तुतः इस शिलालेख से बहुत पीछे की कृतियां हैं। प्रसिद्ध पुरातत्वविद् विद्यामहोदधि श्री काशीप्रसाद जायसवाल, एम. ए. बारएट ला ने तो इस शिलालेख के सम्बन्ध में यहां तक लिखा है :
(१) .."पर ऐतिहासिक घटनाओं और जीवन चरित् को अंकित करने वाला भारतवर्ष का यह सबसे पहला शिलालेख है।'
(२) जैन धर्म का यह अब तक सबसे प्राचीन लेख है।
(३) “मालूम रहे कि कोई जैनग्रन्थ इतना पुराना नहीं है, जितना कि यह लेख है।
एक ओर तो वीर नि० की चौथी शताब्दी में उकित खारवेल के सर्वाधिक प्राचीन शिलालेख में विविध धर्मकार्यों का विवरण होते हुए भी मूर्तिपूजा अथवा मन्दिर निर्माण का कहीं नामोल्लेख तक नहीं और दूसरी ओर इस शिलालेख से क्रमशः ८००,६००, १३७० और इससे भी बड़ें उत्तरवर्ती काल के भाष्यकारों,
१. कलिंग चक्रवर्ती महाराज के शिलालेख का विवरण (काशी नागरी प्रचारिणी सभा
की ओर से सन् १९२८ में प्रकाशित), पृष्ठ २ २. वही पृष्ठ ६ 3. वही पृष्ठ ११ ।
अणुयाणे अणुयाति, पुप्फारूहणाइ उक्खीरणगाई । पूयं च बेतियाणं, ते वि सरज्जेसु कारेति ॥ ५७५४ ।। निशीथ भाष्य, भाग ४, पृष्ठ १३१
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