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________________ २३८ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ पूजा व्यवस्था हेतु पुजारियों के लिये भूमिदान ग्रामदान आदि के रूप में राजभृति की व्यवस्था निश्चित रूप से करते एवं शिलालेख में अन्यान्य कार्यों का जिस प्रकार क्रमशः उल्लेख किया गया है उसी प्रकार इन प्रात्यन्तिक महत्व के कार्यों का भी निश्चित रूप से उल्लेख किया जाता। इस शिलालेख की १७वीं पंक्ति में खारवेल को सर्वदेवायतन संस्कारक बताया गया है । यदि उसके राज्यकाल तक जैनों अथवा बौद्धों में मूर्तिपूजा एवं मन्दिर-निर्माण का प्रचलन हो गया होता तो वे जैन एवं बौद्ध मन्दिर भी तूफान में अवश्यमेव क्षतिग्रस्त होते और खारवेल तूफान में क्षतिग्रस्त हुए प्रासाद, प्राकार, राजमहल, उपवन, फवारों आदि की तरह उन जैन मन्दिरों व बौद्ध मन्दिरों का जीर्णोद्धार भी अवश्य करवाता। इतना ही नहीं, यदि खारवेल के समय तक जैनों अथवा बौद्धों में मूर्तिपूजा एवं मन्दिरनिर्माण का प्रचलन हो गया होता तो खारवेल जैसा परमाहत एवं जैन धर्म के प्रति प्रगाढ़ निष्ठा रखने वाला राजा कलिंग की राजधानी में और कुमारी पर्वत पर एक दो जैन मन्दिरों का नव्य-भव्य निर्माण तो अवश्यमेव ही करवाता । किन्तु शिलालेख साक्षी है कि ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। खारवेल के इस शिलालेख से प्रकाश में आये इन तथ्यों पर इतिहासज्ञ स्वयं विचारकर निर्णय करें कि वे किस सत्य की ओर इंगित कर रहे हैं। खारवेल के इस शिलालेख से एक यह तथ्य भी प्रकाश में प्राता है कि वीरनिर्वाण से लेकर इस शिलालेख के उटेंकनकाल (वीर नि. सं. ३७६) तक मूर्तिपूजा और मन्दिर निर्माण का प्रचलन बौद्धों में भी नहीं हुया था। यदि उपर्युक्त अवधि में बौद्धों में मूर्तिपूजा अथवा मन्दिर निर्माण का प्रचलन हो गया होता तो मौर्य सम्राट अशोक जैसा अपने समय का बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा उपासक राजा कलिंग विजय के पश्चात् कलिंग में किसी भव्य बौद्ध मन्दिर अथवा प्रतिमा का निर्माण अवश्य करवाता और सर्वधर्मों के देवायतनों के संस्कार के विरुद से विभूषित खारवेल उस मन्दिर का जीर्णोद्धार अवश्यमेव करवाता तथा उस जीर्णोद्धार का उल्लेख इस शिलालेख में निश्चित रूप से होता। इसी प्रकार उपयुक्त अवधि में किसी समय जैनधर्म में भी मूर्तिपूजा अथवा मन्दिर निर्माण को कोई स्थान मिला होता तो खारवेल के सिंहासनारूढ़ होने से केवल २६ वर्ष पहले स्वर्गस्थ हुआ मौर्य सम्राट सम्प्रति भी कलिग की राजधानी अथवा पवित्र कुमारी पर्वत पर अवश्यमेव जिनमूर्ति की प्रतिस्ठापना और जैन मन्दिर का निर्माण करवाता । खारवेल के सिंहासनारूढ़ होने से पूर्व कलिंग में आये तुफान में जिस प्रकार राजप्रसाद, भवन गोपुर, प्राकार आदि भलुण्ठित अथवा क्षतिग्रस्त हुए, उसी प्रकार कोई न कोई जैन मन्दिर भी क्षतिग्रस्त होता और परमाई त खारवेल द्वारा उसके जीर्णोद्धार का इस शिलालेख में अवश्य ही उल्लेख होता। पर वस्तुस्थिति इससे पूर्णतः विपरीत है, क्योंकि खारवेल ने अपने १६ वर्ष के राज्यकाल में धर्मरक्षा, धर्माभ्युदय और लोककल्याण के अनेक कार्य किये पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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