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यापनीय परम्परा ]
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महाविजय प्रासाद नामक राजसन्निवास अड़तीस लाख (अठतीसाय सतसहसे हि ) की लागत का बनवाया ।
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दशवें वर्ष में उसने पवित्र विधानों द्वारा युद्ध की तैयारी करके देश जीतने की इच्छा से दण्ड, सन्धि एवं शाम नीति से उत्तरी भारत की ओर प्रस्थान किया । उस आक्रमण में बिना किसी क्लेश के आक्रान्त लोगों से मणि और रत्नों को प्राप्त किया ।
( ११वीं पंक्ति) ग्यारहवें वर्ष में, पूर्व राजा द्वारा १३०० वर्ष पूर्व मंडप में निवेशित ( एवं ) समस्त (कलिंग) जनपद की मनभावन, मोटी लकड़ी के बड़े-बड़े पहियों वाली, तिक्त (नींम की) काष्ठ से निर्मित केतुभद्र की ऊंची और विशाल मूर्ति को उसने ( खारवेल ने ) उत्सव से निकाला ।
बारहवें वर्ष में .... उसने उत्तरापथ - उत्तरी पंजाब और सीमान्त प्रदेश के राजाश्रों में त्रास उत्पन्न किया ।
( बारहवीं पंक्ति) .... और मगध के निवासियों में बिपुल भय उत्पन्न करते हुए उसने अपने हाथियों को गंगा पार कराया और मगध के राजा बृहस्पतिमित्र से अपने चरणों की वन्दना करवाई । नन्दराज द्वारा ( पूर्व में ) ले जाये गये कालिंग जिन (?? जन ?? ) सन्निवेश ' ( कालिंग जिन सन्निवेश ? अथवा कलिंग जन सन्निवेश ? ) ..गृहरत्नों और अंग तथा मगध के धन को भी वह ( खारवेल)
ले गया ।
( तेरहवीं पंक्ति ) – उसने ....... जठरोल्लिखित ( जिनके भीतर की ओर लेख लिखित हैं ) उत्तम शिखर, सौ कारीगरों को भूमि प्रदान कर बनवाये और यह बड़े आश्चर्य की बात है कि वह पाण्ड्यराज से हस्तिनावों ( हाथियों को ढोने वाली विशाल नावों) में सभी प्रकार की बहुमूल्य वस्तुएं - घोड़े, हाथी, रत्न, माणिक्य, मौक्तिक और मणिरत्न खचाखच भरवा कर लाया। वहां रह कर .........
( चौदहवीं पंक्ति) - उसने.. . के निवासियों को वश में किया ।
तदनन्तर तेरहवें वर्ष में ( उसने ) उन जप – जाप करने वालों को, सब सुपर्वतों में विजयी चक्र के समान अर्थात् श्रेष्ठ आदरणीय कुमारी पर्वत पर स्थित निषद्या ( समाधियों) पर कुशल-क्षेम के लिये जप का जाप करने वाले लोगों को जप पूर्ण होने पर राजभृतियां वितरित कीं और उन्हें उसी प्रकार निषद्याओं पर
१.
सर विलियम मोन्योर का संस्कृत से प्रांग्ल भाषा शब्दकोष देखें ।
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