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________________ २३४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ (जीर्णोद्धार करवाया) सभी उद्यानों का प्रतिसंस्थापन, वातविहत वृक्षों, गुल्मों प्रादि के स्थान पर नये सिरे से वृक्षारोपण पूर्वक संस्कार - (चौथी पंक्ति)-करवाया और अपने कलिंग राज्य की ३५ लाख प्रजा का रंजन किया। दूसरे वर्ष में सातकरिण (राजा) की कोई चिन्ता न कर उसने पश्चिम देश को बहुत से हाथी, घोड़ों, पदातियों और रथों की एक विशाल सेना (चढ़ाई अथवा आक्रमण के लिये) भेजी। कृष्णवेणा नदी पर पहुंची हुई उसकी सेना ने मूषिकनगर को बहुत त्रस्त किया । तदनन्तर तीसरे वर्ष में, (पांचवीं पंक्ति)-गन्धर्ववेद के पारंगत पण्डित उस (खारवेल) ने दम्प, नृत्य, गीत, वादित्र, संदर्शनों (तमाशों), उत्सवों, समाजों, (नाटक-दंगलों) आदि से नगरी को प्रमुदित किया । चौथे वर्ष में उन विद्याधराधिवासों को, जो पूर्व में कभी नहीं गिराये (विजित किये) गये तथा जो कलिंग के पूर्वज राजाओं द्वारा बनाये गये थे....... (पराजित किया)..........उसने समस्त राष्ट्रिकों तथा भोजकों के मुकुटों को व्यर्थ कर उनके जिरह-बख्तरों अर्थात् लौह निर्मित कवचों-को तलवार के प्रहारों से दो पल्लों में काट कर उनके छत्र और भंगारों को नष्ट भ्रष्ट एवं भूलु ठित कर उनके रत्न एवं बहुमूल्य सम्पत्ति का हरण कर उन राष्ट्रिकों एवं भोजकों से अपने चरणों की वन्दना करवाई। तदनन्तर अपने राज्य के पांचवें वर्ष में उसने नन्दराज (उदायी के उत्तराधिकारी नन्दिवर्द्धन-प्रथम नन्द द्वारा अपने राज्य के १६ वें वर्ष तदनुसार नन्द सं० १६ और वीर नि० सं० ७६ में) द्वारा आज (हाथीगुंफा के इस शिलालेख के उटेंकन काल से ३०० वर्ष पूर्व खुदवाई गई) नहर को तनसुलिय मार्ग से नगर (कलिंग राजधानी) में प्रविष्ट किया। (छठे वर्ष में यज्ञार्थ) अभिषिक्त हो उसने राजसूय यज्ञ कर सब करों को (सातवीं पंक्ति) क्षमा कर दिया। अनेक प्रकार के अनुग्रह पौर एवं जानपद (संस्थाओं) को प्रदान किये। सातवें वर्ष राज्य करते हुए वज्जिवंश की धष्टि नाम को गहिणी (महारानी) ने मातृक पद को पूर्ण कर सुकुमार............(पुत्र को जन्म दिया)............ . . आठवें वर्ष में खारवेल ने बड़े प्राकार वाले गोरथगिरि पर एक बड़ी सेना द्वारा (आठवीं पंक्ति) आक्रमण कर के राजगह को घेर लिया। उसके शौर्य के सन्नाद (इस समाचार) को सुन यवनराज डिमित (डिमिदियस) मथुरा (के घेरे) को छोड़कर (स्वदेश की ओर) लौट गया। (नौवें वर्ष में) उसने दिये........पल्लव युक्त-(नौवीं पंक्ति)-कल्पवृक्ष, सारथी सहित हय-गज-रथ और सब को अग्निवेदिका सहित गृह आवास एवं परिवसन । सब दान को ग्रहण कराये जाने के लिये उसने ब्राह्मणों की जाति पंक्ति (जातोय संगठनों) को भूमि प्रदान की । अर्हत ......................गिय-- (१०वीं पंक्ति)........ (क)........मान (ति-वि) उसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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