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________________ यापनीय परम्परा ] [ २३३ एवं पुरातात्विक अवशेषों ने निर्मूल कर दिया । क्योंकि आर्य स्कंदिल के. स्वर्गस्थ होने के ६० - ६४ वर्ष पश्चात् का एक शिलालेख जिस पर संवत् ....६६ ( कनिष्क संवत् २ε६) तदनुसार वीर नि० सं० १०४ उट्टंकित है, कंकाली टीले की खुदाई करते समय उपलब्ध हुआ है । महान् प्रभावक प्राचार्य स्कन्दिल लगभग वीर नि० सं० ८३० से ८४० तक - लगभग १० वर्ष तक मथुरा में रहे पर उनके किसी भी श्रमणोपासक अथवा श्रमणोपासका द्वारा वीर निर्वाण की 5वीं शताब्दी से हवीं शताब्दी के अन्त तक अर्हत् मूर्ति की प्रतिष्ठा अथवा अर्हत् मन्दिर का निर्माण नहीं करवाया, यह एक निर्विवाद तथ्य मथुरा के कंकाली टीले एवं अन्यान्य स्थानों से उपलब्ध शिलालेखों से प्रकट होता है । आर्य स्कन्दिल ने जिस समय मथुरा में आगम वाचना की, ठीक उसी समय प्राचार्य नागार्जुन ने भी दक्षिण आदि सुदूरस्थ प्रान्तों के मुनि - संघों को बल्लभी में एकत्रित कर आगम वाचना की । आर्य स्कन्दिल की भांति प्राचार्य नागार्जुन को भी उस श्रागम वाचना उस अनुयोग - प्रवर्तन के समय लगभग १० वर्ष तक तो बल्लभी में रहना ही पड़ा होगा । आचार्य नागार्जुन भी यदि मूर्तियों एवं मन्दिरों के निर्माण तथा मूर्तिपूजा के पक्षधर होते तो उनके समय की उनके श्रमणोपासकों द्वारा प्रतिष्ठापित मूर्तियों और मन्दिरों के अवशेष - शिलालेख आदि कहीं न कहीं प्रवश्यमेव उपलब्ध होते । परन्तु आज तक भारत के किसी भाग इस प्रकार का न कोई शिलालेख ही उपलब्ध हुआ है और न कोई मूर्ति अथवा मन्दिर का अवशेष ही । ―― - आर्य स्कन्दिल से लगभग ५०० वर्ष पूर्व हुए कलिंग सम्राट् महा मेघवाहन खारवेल भिक्खुराय के कुमारी पर्वत की हाथीगुफा में उटंकित करवाये गये शिलालेख से भी यही तथ्य प्रकाश में आता है कि उसके शासन काल तक जैनधर्म संघ में मूर्तिपूजा, एवं मन्दिर निर्माण का प्रचलन नहीं हुआ था । खारवेल का यह शिलालेख जैनधर्म के सम्बन्ध में अब तक प्रकाश में आये हुए शिलालेखों में राबसे प्राचीन और सबसे बड़ा शिलालेख है । इसमें प्राज तक अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं हुए महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों के साथ-साथ खारवेल द्वारा अपने १३ वर्षों (वीर नि० सं० ३१६ से ३२६ तक) के शासनकाल में किये गये सभी महत्वपूर्ण कार्यों का विवरण दिया गया है। वे महत्वपूर्ण कार्य इस शिलालेख में निम्नलिखित क्रम से उटंकित हैं : Jain Education International ( तीसरी पंक्ति) : -- प्रभिषिक्त होते ही अपने राज्य के प्रथम वर्ष में श्री खारवेल ने ( पूर्व में आये ) तूफान से गिरे ( क्षतिग्रस्त ) नगरद्वारों, नगरप्राकार और निवेसमनों (निवासगृहों ) का संस्कार अर्थात् जीर्णोद्धार करवाया, कलिंग नगरी (राजधानी) के फव्वारों, इषितालों (पोखरों ), तालाबों तथा बांधों को बंधवाया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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