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यापनीय परम्परा ]
[ २१५ ____इन उपरि लिखित तथ्यों एवं उद्धरणों से यह सिद्ध है कि प्रारम्भ में यापनीय परम्परा की मान्यताएं एवं प्राचार-विचार श्वेताम्बर परम्परा की मान्यतामों और प्राचार-विचार के अधिकांशतः अनुरूप ही थे।
दर्शनप्राभृत के टीकाकार दिगम्बराचार्य श्रुतसागरसूरि ने यापनीयों की मान्यताओं पर कुछ और अधिक प्रकाश डालते हुए दर्शन प्रामृत की टीका में लिखा है :-"यापनीयास्तु बेसरा इव उभयं मन्यन्ते, रत्नत्रयं पूजन्ति, कल्पं च वाचयन्ति, स्त्रीणां तद्भवे मोक्षं, केवलिजिनानां कवलाहारं पर-शासने सग्रन्थानां मोक्षं च कथयन्ति ।" अर्थात-यापनीय लोग तो बिना नाथ (नाक की रस्सी) के बैलों की तरह श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्परामों की बातों को मानते हैं। वे लोग रत्नत्रय की पूजा करते हैं, कल्पसूत्र की वाचना करते हैं, स्त्रियों का उसी भव में मोक्ष होना मानते हैं। वे केवलियों का कवलाहार और जैनेतर धर्म के अनुयायियों का सग्रन्थावस्था अर्थात् सवस्त्रावस्था में भी मोक्ष मानते हैं।
इस उल्लेख में 'रत्नत्रयं पूजयन्ति' इस वाक्य को देखकर शोधार्थियों के मन में यह प्रश्न भी उत्पन्न हो सकता है कि क्या श्रुतसागरसूरि के समय में यापनीयों में कोई ऐसा साधुसमूह भी था जो तीथंकरों की मूर्ति के स्थान पर रत्नत्रयसम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यकचारित्र की पूजा करता था? श्रुतसागरसूरि द्वारा उल्लिखित यापनीयों की शेष सब मान्यताएं श्वेताम्बर परम्परा की मान्यतामों के समान ही हैं।
दर्शन प्राभृत की टीका के उपयुल्लिखित उद्धरण-'कल्पं च वाचयन्ति'इस वाक्य को देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है कि श्वेताम्बरों और यापनीयों की मान्यतामों में कोई अन्तर ही नहीं था, अथवा वे इस मान्यता की दृष्टि से तो श्वेताम्बरों के बिल्कुल समीप ही थे।
__ श्वेताम्बराचार्य गुणरत्न ने यापनीय साधुओं के वेष और उनके दो तीन कार्य-कलापों पर प्रकाश डालते हुए षड्दर्शनसमुच्चय की टीका में लिखा है कि यापनीय संघ के मुनि नग्न रहते हैं, मोर की पिच्छी रखते हैं, पाणितलभोजी हैं, नग्न मूर्तियों की पूजा करते हैं तथा वन्दन-नमस्कार करने पर श्रावकों को 'धर्मलाभ' कहते हैं।
'भगवती आराधना' (मूलाराधना) के गहन अध्ययन, चिन्तन और मनन से यापनीय संघ की और भी अनेक प्रमुख मान्यताओं का पता चलता है । उदाहरण के रूप में मूलाराधना के 'विजहणाधिकार' की निम्नलिखित गाथानों से विक्रम की पांचवीं शताब्दी में यापनीय परम्परा के साधुओं में प्रचलित एक आश्चर्यकारी रीति-नीति अथवा प्रचलन का पता चलता है :
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