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यापनीय परम्परा ]
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पंचसया चुलसीया, छच्चव सया एवोत्तरा हुंति । णाणुपत्ति य दुवे, उप्पण्णा णिव्वुए सेसा ॥ ७८३ ।।
आवश्यक निर्यक्ति की इन दो गाथाओं में अन्य घटनाचक्र के साथ यह बताया गया है कि वीर नि० सं० ६०६ में रथवीरपुर में दिगम्बर संघ की उत्पत्ति हुई । आवश्यक नियुक्ति के रचनाकार आचार्य भद्रबाहु का समय प्रमाण पुरस्सर वीर नि० सं० १०३२ के आस-पास का निर्धारित किया जा चुका है।'
(३) भद्रबाहु द्वितीय के पश्चात् का एतद्विषयक उल्लेख है वीर नि० सं० १०५५ से १११५ तक युगप्रधानाचार्य पद पर रहे जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की महान् कृति विशेषावश्यक भाष्य और विशेषावश्यक भाप्य वृहद्वृत्ति का, जो इस प्रकार है :
छब्वास सयाई, तइया, सिद्धि गयस्स वीरस्स । तो बोडियाण दिट्ठी, रहवीरपुरे समुप्पण्णा ॥ २५५० ॥ रहवीरपुरं नगरं, दीवगमुज्जाणमज्जकण्हे य । सिवभूइस्सुवहिम्मि, पुच्छा थेराण कहणा य ।। २५५१ ।।
(विशे० भाष्य) वोडिय सिवभूईओ, बोडियलिंगस्स होई उप्पत्ति। कोडिय कोट्टवीरा, परम्पराफासमुप्पन्ना ॥ १५५२ ॥
(वि० भा० वृ० वृ०) (४) इससे उत्तरवर्ती उल्लेख है जिनदास महत्तर की वीर नि० सं० १२०३ की रचना प्रावश्यक चूरिंग का, जिसमें कि रथवीरपुर में वीर नि० सं० ६०६ में दिगम्बर परम्परा की उत्पत्ति का उल्लेख किया गया है।
(५) इस प्रकार संघभेद विषयक श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में जो उल्लेख हैं, वे कमश: वीर नि. सं. १०३२, वोर नि. सं. १०५५ से १११५ के बीच की अवधि तथा वीर नि. सं. १२०३ के हैं।
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, संघभेद विषयक दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ वृहदकथाकोष, दर्शनसार और भद्रबाहु चरित्र में जो उल्लेख हैं, वे क्रमशः वीर नि. सं. १४५६, १४६० और २०६५ के होने के कारण श्वेताम्बर परम्परा के
अावश्यक नियुक्ति । भद्रबाहु द्वितीय के समय के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी के लिये
देखिये जैनधर्म का मौलिक इतिहास, भाग २, पृष्ठ ३२५ से ३७४ । २. विशेपावश्यक भाष्य, स्वोपज वृहद् वृत्ति, पृष्ठ १०२० 3. पावश्यक चूगिण-उपोद्घात नियुक्ति, पृ० ४२७-४२८
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