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यापनीय परम्परा ]
तदातिवेलं भूषाद्यै:, पूजिता मानिताश्च तैः । धृतं दिग्वाससां रूपमाचारः सितवाससाम् ।। १५३ ॥ गुरुशिक्षातिगं लिंगं, नटवद् भण्डिमास्पदम् । ततो यापनसंघोऽभूत्तेषां कापथवर्तिनाम् ।। १५४ ।।
इस प्रकार प्राचार्य रत्ननन्दि ने श्वेताम्बर परम्परा से ही यापनीय संघ की उत्पत्ति बताई है, किन्तु इस संघ की उत्पत्ति किस सम्वत् में हुई, इसका कोई उल्लेख नहीं किया है । प्राचार्य देवसेन के कथन से आचार्य रत्ननन्दि के कथन में यह अन्तर है कि प्राचार्य देवसेन ने कल्यारण नामक नगर में श्रीकलश नामक श्राचार्य से यापनीय परम्परा की उत्पत्ति होने का उल्लेख किया है; जबकि देवसेन से ६३५ वर्ष पश्चात् हुए प्राचार्य रत्ननन्दि ने इस परम्परा के संस्थापक प्राचार्य का कोई नामोल्लेख न करते हुए केवल इतना ही लिखा है कि करहाटाक्ष नगर में श्वेताम्बरों से यापनीय परम्परा की उत्पत्ति हुई ।
इस प्रकार दिगम्बर परम्परा के आचार्यों ने यापनीय संघ की उत्पत्ति श्वेताम्बर संघ से बताई है ।
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इसके विपरीत श्वेताम्बर आचार्य मलधारी राजशेखर ने अपनी एक महत्वपूर्ण रचना 'षड्दर्शन समुच्चय' में यापनीय संघ को गोप्य संघ नाम से अभिहित करते हुए स्पष्ट शब्दों में दिगम्बर परम्परा का ही एक भेद बताया है । आचार्य राजशेखर ने इस सम्बन्ध में लिखा है :
दिगम्बराणां चत्वारो, भेदा नाग्न्यव्रतस्पृशः । काष्ठासंघो मूलसंघः, संघौ माथुरगोप्यकौ ।। २१ ।।
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अर्थात् निर्वस्त्र रहने वाले दिगम्बरों के काष्ठासंघ, मूलसंघ, माथुरसंघ प्रीर गोप्य अर्थात् यापनीय संघ ये चार भेद हैं । इसके अतिरिक्त श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में कहीं इस प्रकार का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता कि दिगम्बर परम्परा में यह संघ किस समय उत्पन्न हुआ और इसका श्राद्य प्रवर्तक आचार्य कौन था ।
दिगम्बर परम्परा के आचार्य देवसेन द्वारा रचित 'दर्शनसार' की उपर्युद्धत गाथा में श्वेताम्बर आचार्य श्रीकलश से विक्रम संवत् २०५ में यापनीय परम्परा के उत्पन्न होने की जो बात कही गई है, उस पर विचार करने और उसे तथ्यों की कसौटी पर कसने के अनन्तर तो प्राचार्य देवसेन का यह कथन तथ्यों से परे ही प्रतीत होता है । दर्शनसार की उपरिलिखित गाथा में यापनीय परम्परा की उत्पत्ति श्वेताम्बर संघ से बताई गई है किन्तु यापनीय संघ के जितने भी गरणों, गच्छों अथवा संघों के नाम जो आज तक प्राचीन शिलालेखों, अभिलेखों, ताम्रपत्रों आदि में उपलब्ध हुए हैं, वे सब के सब दिगम्बर परम्परा के संघों, गणों, गच्छों एवं
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