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________________ २०२ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३ . यापनीय संघ का उद्गम काल-एवं इसका मूल स्रोत यापनीय संघ का जन्म किस समय हुआ और इसके उद्गम स्रोत के रूप में कोनसी परम्परा रही, इस सम्बन्ध में विद्वानों द्वारा विभिन्न मान्यताएं प्रकट की गई हैं और इस तरह यह प्रश्न अद्यावधि विवादास्पद ही बना हुआ है। दिगम्बर परम्परा के दो प्राचार्यों ने यापनीय संघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में केवल सूचनापरक उल्लेख किया है। उनमें प्रथम हैं आचार्य देवसेन। 'दर्शनसार' की प्रशस्ति के अनुसार देवसेन ने विक्रम संवत् ६६० में प्राचीन प्राचार्यों की गाथानों का संकलन कर 'दर्शनसार' नामक ५१ गाथाओं की एक छोटी सी कृति की रचना की, जिसमें यापनीय संघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में उल्लेख है : "कल्लाणे वरणयरे, दुण्णिसए पंच उत्तरे जादे । जावरिणय संघ भावो, सिरिकलसादो हु सेवड़दो ॥" (दर्शनसार गाथा संख्या २६) अर्थात-कल्याण नामक सुन्दर नगर में श्रीकलश नामक एक श्वेताम्बर साधु से विक्रम संवत् २०५ में यापनीय संघ की उत्पत्ति हुई। प्राचार्य देवसेन के इस उल्लेख के अनुसार दिगम्बर परम्परा में यह अभिमत प्रचलित है कि विक्रम सं. २०५ तदनुसार वीर नि. सं. ६७५ एवं ई. सन् १४८ में यापनीय संघ की उत्पत्ति हुई। प्राचार्य देवसेन की इस मान्यता के अनुसार श्वेताम्बर दिगम्बर मत विभेद (श्वेताम्बर परम्परा की मान्यतानुसार वीर नि. सं. ६०६ और दिगम्बर परम्परा की मान्यतानुसार वीर नि. मं. ६०६) के ६६ अथवा ६६ वर्ष पश्चात् यापनीय संघ की उत्पत्ति हुई । दर्शनसार के रचयिता देवसेन से पूर्ववर्ती देवमेन (आचार्य विमलमेन के शिष्य) ने अपनी रचना 'भाव संग्रह' में श्वेताम्बर परम्परा की वि. मं. १३६ (वीर नि. सं. ६०६) में उत्पत्ति होने का तो उल्लेख किया है किन्तु यापनीय मंघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई दिवरण नहीं दिया है । विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी के प्राचार्य रत्ननन्दि ने भी वि. सं. १६२५ की अपनी कृति भद्रबाहुचरित्र में अर्द्ध फालक मत के रूप में श्वेताम्बर मंघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में बड़े विस्तारपूर्वक विवरण प्रस्तुत किया है, जो कतिपय अंशों में विक्रम की दशवीं शताब्दी के ग्रन्थकार भट्टारक हरिषेण द्वारा विक्रम सं. १८६ की अपनी कृति वृहत कथा कोष में किये गये अर्द्ध फालक मत की उत्पत्ति से मिलता-जुलता है । भट्टारक हरिषेण ने तो यापनीय संघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं किया है किन्तु आचार्य रत्ननन्दि ने बिना किसी कालनिर्देश के निम्नलिखित रूप में यापनीय संघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अपनी कृति “भद्रबाहचरित्र" में लिखा है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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