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यापनीय परम्परा ]
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अभिनव तीर्थस्थलों और भांति भांति के धर्मस्थानों से मण्डित हो गया। राजरानियों, अमात्यपत्नियों; अधिकारियों की अर्द्धा गिनियों, श्रेष्ठिपत्नियों और सभी वर्गों की महिलाओं ने व्रत, नियम, धर्माचरण, तपश्चरण के साथ-साथ भूमिदान, द्रव्यदान आहारदान, भवनदान आदि लोक-कल्याणकारी कार्यों में बड़ी उदारतापूर्वक उल्लेख नीय अभिरुचि लेकर जैन धर्म की महती प्रभावना की। इतना ही नहीं बहुत बड़ी संख्या में महिलाओं ने संसार को दुःख का सागर समझ कर जन्म, जरा मृत्यु के दारुण दुःखों से सदा के लिए छुटकारा पाने हेतु श्रमणी धर्म में प्रव्रज्याए भी ग्रहण की। साधुओं, साध्वियों, विरक्तों और गृहस्थ किशोरों को सैद्धांतिक शिक्षण देने के लिए अनेक स्थानों पर बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों, महाविद्यालयों की स्थापना हेतु मुक्त हस्त हो दान देने में महिला वर्ग अग्रणी रहा । प्राचीन शिलालेख आज भी इस बात की साक्षी देते हैं कि कर्णाटक प्रान्त में जैनधर्म के प्रचार प्रसार के लिये जैन धर्म के उत्कर्ष के लिये, जैनधर्म-संघ को एक सबल संगठन बनाने के लिए, जैन-धर्म की प्रभावना-वर्चस्वाभिवृद्धि के लिये, जैन-धर्म को लोकप्रिय बनाने के लिये और जैन-धर्म के प्रचार प्रसार के प्रवाह को चिरप्रवाही बनाये रखने के लिये दक्षिणापथ के सभी क्षेत्रों में, कोने-कोने में अनेक धर्मस्थानों का निर्माण महिला वर्ग ने करवाया।
उस समय साध्वियों के स्वतन्त्र संघों में साध्वियों की कितनी बड़ी संख्या होती थी, इस तथ्य का बोध हमें अनेक शिलालेखों से होता हैं। चोलवंशीय महाराजा प्रादित्य प्रथम के शासनकाल के, वेदाल से उपलब्ध ईसा के नवीं शताब्दी के अन्तिम चरण के एक शिला लेख से पता चलता है कि अकेले बेडाल क्षेत्र में ई० सन् ८५० के पास-पास ६०० (नौ सौ) से भी अधिक साध्वियां विद्यमान थीं। वेडाल के इस शिलालेख में उल्लेख है कि ५०० (पांच सौ) साध्वियों की अधिनायक प्राचार्या कुरत्तियार कनकवीर के साथ किसी अन्य जैन संघ की वेडाल में ही विद्यमान ४०० (चार सौ) साध्वियों का मनोमालिन्य हो गया।' माध्वियों के उन दोनों शक्तिशाली संघों के बीच हुआ वह झगड़ा बढ़ते-बढ़ते बड़ा उग्र रूप धारण कर गया । इस शिलालेख में उल्लेख है कि वह कनकवीर कुरत्तियार (प्राचार्या) वेडाल के भंडारक गुणकीति की अनुयायिनी और शिष्या थी। गुणकीति भट्टारक के धर्मसंघ के अनुयायियों अर्थात् उस प्राचार्या कनकवीरा कुरतियार के भक्तों ने अपनी गुरुणी के समक्ष उपस्थित हो उन्हें आश्वासन दिया कि वे उनके साध्वीसंघ की रक्षा और उनकी प्रतिदिन की सभी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे।
इस शिलालेख में कनकवीरा करत्तियार के गरु का नाम गुणकीति भट्रारक उल्लिखित है और यापनीय संघ के साधुनों तथा प्राचार्यों के नाम के अन्त में प्रायः कीर्ति और नन्दि होता है । इससे वह अनुमान किया जाता है कि कुरत्तियार कनक' एम. पाई. पाई (माउथ इण्टिा इन्ग्क्रिष्णन्म) वोल्यूम ३. मं० ६२
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